बुधवार, 16 दिसंबर 2009

जाति प्रथा की मजबूत जंजीरें

जाति प्रथा की मजबूत जंजीरें
किस जाति के हैं हम
जातिवाद की आग में झुलस सकता है देश
(लिमटी खरे)

मुगलों और अंग्रेजों के आक्रमण के बाद आजाद हुए छ: दशक से ज्यादा समय बीत चुका है किन्तु देश से जाति के नाम पर वेमनस्य कम होता नहीं दिख रहा है। वोटबैंक सहेजे रखने की खातिर जनसेवकों द्वारा अगडी और पिछडी जातियों के बीच की खाई को पाटने के बजाए बढाने का ही काम किया जाता रहा है।
जातिवाद के नाम पर घुलने वाले जहर में उंची और नीची जाति के अलावा और भी अनेक शाखाएं हैं जो ``मानव जाति`` को ही बांटने के मार्ग प्रशस्त करती नजर आती हैं। कहने को तो ``हिन्दु, मुस्लिम, सिख्ख, इसाई, आपस में हैं भाई भाई`` के नारे सियासी दलों द्वारा बुलंद किए जाते हैं पर जब वोट बैंक की बात आती है, तब इस नारे को भुलाकर निहित स्वार्थों की बात ही की जाती है।
जातिवाद के नाम पर संघर्ष के नाम से पहचाने जाने वाले उत्तर प्रदेश सूबे में तीस साल पहले अगडी जाति के लोगों द्वारा आठ दलितों की हत्या के ममाले में सजा सुनाते हुए देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाव दिया है कि देश से जाति प्रथा को समाप्त कर दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट का सुझाव स्वागत योग्य है, किन्तु इस पर अमल जरा मुश्किल प्रतीत होता है। सर्वोच्च न्यायालय के सुझाव पर अमल कर केंद्र सरकार इस बारे में कानून बनाएगी यह संभव प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि एसा करने से उनके वोट बैंक पर धक्का लग सकता है।

आम शहरी आदमी इस जातिवाद जैसी कुप्रथा से मुक्ति का हिमायती दिखता है। वहीं दूसरी ओर गांव पूरी तरह से इस कुप्रथा के शिकंजे में है। राजनीति की शह पर जातिवाद का यह केंसर अब नासूर बन चुका है। गुजरात में ही 29 गांवों में दलितों को सामाजिक तौर पर स्वीकार नहीं किया गया है। सरकार ने भी यहां के 12 गांवों को अत्याचार की आशंका की श्रेणी में रख छोडा है।
मध्य प्रदेश में जाति के आधार पर सियासत करने वालों की कमी नहीं हैं। विन्ध्य में जहां ठाकुरों का बोलबाला है तो चंबल में गूजर, ठाकुर और ब्राम्हण हावी हैं। कहीं भी किसी भी सूबे में दलितों को आगे नहीं लाया गया है, यही कारण है कि दलित समाज में इसी भावना को कुरेदकर नक्सलवादी, अलगाववादी अपने अपने सम्राज्य का विस्तार करते जा रहे हैं।
जातिगत भेदभाव और अत्याचार के लिए मौजूदा कानून का प्रयोग भी बहुत सख्ती के साथ नहीं किया जाता है। वैसे इसके दुरूपयोग की संभावनाएं ज्यादा ही नजर आतीं हैं। सालों से सेठ साहूकारों के कर्ज के बोझ तले दबे निम्न वर्ग के लोगों को अपने प्रतिद्वंदी और विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल से नहीं चूकते ये महाजनी करने वाले लोग। रही सही कसर जनसेवकों के प्रश्रय के कारण इन कानूनों के तहत फर्जी प्रकरण दर्ज कर पूरी करवा दी जाती है।
सर्वोच्च न्यायालय के इस अनुकरणीय सुझाव का तहेदिल से स्वागत किया जाना चाहिए। साथ ही सरकार को चाहिए कि इस विषय पर जनजागरण की अलख बहुत लंबे समय तक जगाए। सामान्य वर्ग के लोगों को भी चाहिए कि जाति के आधार पर राजनीति करने वाले राजनेताओं का सार्वजनिक तौर पर बहिष्कार करें।
विडम्बना ही कही जाएगी कि आजादी के बासठ सालों के बाद भी भारत में जाति सूचक उपनाम (सरनेम) आज भी हावी है। जाति का जहर आज इस कदर देशवासियों की रगों में भर दिया गया है कि अंतरजातीय विवाह होने की दशा में मरने मारने की नौबत आ जाती है। हरियाणा में ही अंतरजातीय विवाह के उपरांत खाप पंचायतों द्वारा युवक युवती को जान से मार देने के उदहारण भी सरकारों की तंद्रा भंग करने के लिए नाकाफी कहे जा सकते हैं।
जातिगत अत्याचार की कहानी पूर्व संसद सदस्य फूलन देवी से बढकर कोई नहीं थी। फूलन के साथ जो कुछ हुआ था वह किसी से छिपा नहीं था। बदला लेने के लिए उसने हिंसा का रास्ता अिख्तयार किया था। आज समाज में न जाने कितने अक्षम लोग होंगे जो इस तरह के अत्याचार को सहने के लिए मजबूर होंगे। मध्य प्रदेश के छिंदवाडा जिले के कोयलांचल में कर्ज में डूबे कर्मचारी यौन यातनाएं तक भोगने को मजबूर हैं।
बहरहाल सर्वोच्च न्यायालय के साथ यह बाध्यता है कि वह हर दिशा निर्देश भारत के संविधान के दायरे में रहकर ही देता है। केंद्र सरकार को चाहिए कि कम से कम इस मामले में तो सर्वोच्च न्यायालय के सुझाव पर अमल करते हुए देश को जाति विहिन बनाने की दिशा में पहल सुनिश्चित करे, वरना आने वाले समय में अलगाववाद, आतंकवाद, नक्सलवाद की आग में सुलग रहे देश में जातिवाद का नया विस्फोट होते देर नहीं लगेगी, जिसे संभालना देश के निजामों के लिए बहुत दुष्कर ही साबित होगा।

और भी हैं बदनाम खि‍लाड़ी

एडविन
महज़ 21 साल की उम्र में ही गोल्फि की दुनिया में धमाकेदार आगाज़ करने वाले टाइगर वुड्स इन दिनों सुर्खि़यों में है। दरअसल वुड्स इस वक्तक अपने सबसे खराब दौर से गुज़र रहे हैं। कई महिलाओं से जिस्मासनी ताल्लुसक़ रखने की बात सामने आने के बाद से लगता है वुडस पर हर तरफ से मुसीबतों का पहाड़ टूट पडा़ हैं । अपनी पत्नी एलिन से तलाक़ की धमकी से डरे वुड्स ने अब गोल्फ को ही छोड़ने का मन बना लिया है। लेकिन अगर इस तरह के आरोपों में खिलाड़ियों के लिप्त होने की बात की जाए तो इसमें कई नामी-गिरामी चेहरों का नाम सामने आता है। इस लि‍स्टो में सबसे ऊपर नाम आता है ऑस्र् मलियाई ‍क्रि‍केट पूर्व स्पिनर शेन वार्न का । वॉर्न पर एक लेखक ने अपनी किताब में 1000 महिलाओं से नाजायज़ संबंध होने का दावा किया था जिनमें से कई तो सही साबित भी हुए। इसके अलावा भी इस पूर्व करिश्माेई लेग स्पिनर पर कई महिलाओं ने अश्लीसल एसएमएस भेजने का भी आरोप लगाया था। इन्हीं आरोपों से तंग आकर वार्न की पत्नीा उनसे अलग हो गई थी। वैसे जब बात क्रि‍केट के गलियारों से निकली है तो इसमें और भी कई नाम ऐसे शामिल हैं जिनकी ऐसे ही आरोपों में काफी फज़ीहत हुई थी। मसलन सिंगापुर दौरे पर खेलने गई पाकि‍स्तामनी टीम के मौजूदा टी-20 कप्ता न शाहिद अफरीदी और उनके दो साथि‍यों पर एक सेक्स स्कैं्डल में शामिल होने की बात सामने आई थी इस पूरे वाक्येप से पाक बोर्ड खा़सा नाराज़ हुआ था और उसने पूरे मामले की जांच के आदेश तक दे दिये थे। वहीं साउथ अफ्रीका के तेज़ गेंदबाज़ मखाया एंटीनी पर भी बलात्का र का आरोप लग चुका है। इसके अलावा फुटबॉल के नामचीन सितारे डेविड बेक़हम पर भी कई औरतों और वेश्यााओं से नाजायज़ संबंध रखने की बात आ चुकी है। वहीं मुक्के बाजी़ में अपने बिगडै़ल रवैये की वज़ह से खास बदनाम रहने वाले माइक टायसन तो बलात्काीर के ज़ुर्म में हवालात तक का सफ़र तय कर चुके हैं। ये तो कुछ खास लोगों के ही नाम हैं लेकिन इस फ़हरिस्ता में अभी और भी नाम शामिल हैं जिन पर यदाकदा ही सही लेकिन इस तरह के आरोप लगते रहे हैं। बहरहाल, तमाम इल्ज़ातम लगने के बाद भी इन सभी खिलाड़ियों का कैरियर पहले की तरह ही आराम से चलता रहा। लेकिन अपने नाम अब तक 84 ‍ख़िताब दर्ज़ कर चुके इस पहले नंबर के खि‍लाडी़ को अपने खेल से ही दूर जाना पड़ रहा है। गौरतलब है कि वुडस की पत्नी ने गोल्फक से दूर जाने की शर्त पर ही साथ रहने को राजी हुई है। अब जबकि ये मसला जगजाहि‍र हो चुका है और वुडस ने इस पर सबसे माफी भी मांग ली है तो ऐसे नाजु़क वक्तल में उनकी पत्नीड को उनका साथ देना चाहिए और उनके बर्बाद होते कैरियर को सहारा देना चाहिए। अमेरिका के पूर्व राष्र्त पति बिल क्लिंटन पर मोनिका ने बलात्काार का आरोप लगाया था तो क्लिंटन की पत्नीर और मौजूदा अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन अपने पति के साथ खडी़ दिखाई दी थी। फि‍लहाल अब देखना है परिवारि‍क ‍ज़ि‍म्मेददारी निभाने के लिए गोल्फन को अलविदा कहने वाले वूडस कब तक लौटते है और लौटकर भी आते है तो उनका लय बरकरार रहता है या वक्तभ के साथ उसमें भी ज़ंग लग जाता है। ये ऐसे कई सवाल हैं जो खेलप्रेमियों के जे़हन में उमड़ रहें हैं ।