शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

भारी हैं भारी उद्योग मंत्रालय के कारनामे

भारी हैं भारी उद्योग मंत्रालय के कारनामे

(लिमटी खरे)


अपने निहित स्वार्थों के लिए देश के नीति निर्धारक किस कदर नियम कायदों को अपनी जेब में रखते हैं इसका उदहारण स्वयंभू मेनेजमेंट गुरू लालू प्रसाद यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री रहते हुए, सुखराम ने संचार मंत्री रहते तो मधु कोडा ने मुख्यमंत्री रहते दिया है। अब भारी उद्योग मंत्रालय में तत्कालीन मंत्री संतोष मोहन देव और वर्तमान में विलासराव देशमुख के शागिZदों ने तबियत से घोटाले और घपले किए हैं।
अमूमन आम जनता की पहुंच से भारी उद्योग मंत्रालय काफी हद तक दूर ही रहता है, क्योंकि लोगों को रोजमर्रा की जरूरतों के लिए इस मंत्रालय से कभी दोचार होना ही नहीं पडता है। पिछली बार भारी उद्योग मंत्री बने संतोष मोहन देव ने तो सारे रिकार्ड ही ध्वस्त कर दिए हैं।
देव के कार्यकाल में अपने चहेतों ठेका देने के लिए नियम कायदों को बलाए ताक रख दिया। देव के गुर्गों का आतंक इस कदर था कि किसी ने भी इनका विरोध करने का माद्दा नहीं था। जिन बेचारे देशप्रेमी सरकारी नुमाईंदों ने इसका प्रतिकार किया उन्हें अपनी नौकरी से ही हाथ धोना पडा।

यह तो देश का सौभाग्य था कि संतोष मोहन देव के कार्यकाल में अफसरशाही और भ्रष्टाचार के जो बेलगाम घोडे दौड रहे थे, वे रूक इसलिए गए कि देव लोकसभा चुनाव हार गए वरना अब तक तो भ्रष्टाचार के न जाने कितने कीर्तिमान स्थापित हो चुके होते।
हिन्दुस्तान में आटोमेटिक स्वचलित चलने वाले वाहनों की जांच परख के लिए देश भर में प्रयोगशालाओं की स्थाना के लिए केंद्र सरकार द्वारा अठ्ठारह सौ करोड रूपए आवंटित किए हैं। इस भारी भरकम राशि के बंदरबांट में भारी उद्योग मंत्रालय ने जमकर भाई भतीजावाद का खेल ``अंधा बांटे रेवडी, चीन्ह चीन्ह कर देय`` की तर्ज पर खेला।
भारी उद्योग मंत्रालय के तहत चलने वाली नेशनल आटोमेटिव टेस्टिंग एंड आर एण्ड डी इंफ्रास्टक्चर प्रोजेक्ट (नेट्रिप) को आवंटित 1800 करोड रूपए का हिसाब किताब भी किसी के पास नहीं है। दरअसल यह राशि रायबरेली, इंदौर, सिल्चर, अहमदनगर, चेन्नई, मानेश्वर आदि में प्रयोगशालाओं की स्थापना के लिए दी गई थी।
1800 करोड रूपए की भारी भरकम राशि में भ्रष्टाचार का खेल आरंभ हुआ कंसलटेंट की शुरूआत के साथ। इसके लिए ग्लोबल टेंडर बुलवाए गए, फिर स्पेन की आईडीआईएडीए, आईसीआए के कंसोर्टियम और आस्ट्रिया के एवीएल को संयुक्त तौर पर इसका कंसलटेंट बना दिया गया।

इस तरह संयुक्त कंपनियों के मार्गदर्शन में काम की शुरूआत हुई, फिर अचानक बीच में ही एवीएल कंपनी ने अपने आप को इस दोड से यह कहकर बाहर कर लिया कि वह इसके लिए निर्माण की निविदा के लिए पार्टीसिपेट करना चाहती है। नियमानुसार देखा जाए तो एवीएल का यह कदम सही था। नेट्रिप ने इसकी इजाजत एवीएल को दे दी।
वस्तुत: अगर एवीएल निर्माण कार्य में रूचि रख रही थी तो नेट्रिप को इस कंपनी को कंसलटेंट नहीं बनाना था, और बना दिया था तो फिर उसे निर्माण कार्य से प्रथक रखा जाना था। कहते हैं लक्ष्मी माता में सबसे अधिक ताकत होती है, और इसी के बल पर देश के नीतिनिर्धाकर आज चुनाव में भी जनादेश तक प्राप्त कर लेते हैं। जब लक्ष्मी माता की कृपा बरास्ता एवीएल नेट्रिप के अफसरान पर हो तो फिर नियम कायदों की धज्जियां उडना स्वाभाविक ही है।
भारी उद्योग मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो एवीएल ने पहले एक हाथ में लाठी और दूसरी में लालटेन लेकर इस परियोजना के बारे में अंधकारमय अंदरखाते की सारी बातों पर प्रकाश डाल दिया फिर ठेकेदार बनकर उसका जमकर फायदा उठाया।
सूत्रों के अनुसार नेट्रिप ने मां लक्ष्मी की चकाचौंध में ठेके की प्रक्रिया में भी बदलाव किया। इसके लिए नेट्रिप ने पारंपरिक सरकारी तरीको तजकर विशेष मूल्यांकन पद्यति इजाद की, जो एवीएल को ठेका दिलाने के लिए उपजाउ माहौल प्रशस्त कर रही थी।
तकनीकि समिति ने इसके बाद एक के बाद एक कर सारे समीकरण एवीएल के पक्ष में करने में कोई कसर नहीं रख छोडी। नेट्रिप ने पावर टैरिन टेस्टिंग इिक्वपमेंट के तहत चार निविदाएं आमंत्रित कीं। इनमें से एक में अमेरिकी मूल की बीईपी कंपनी ने एवीएल को पीछे छोडते हुए लगभग 2 अंक ज्यादा प्राप्त कर लिए।
बीईपी के आगे निकलने से सारा का सारा रायता ही बगर गया। एवीएल के एहसानों तले दबे नेट्रिप के सदस्य और कर्मचारी अधिकारियों ने यह ठेका एवीएल को दिलाने के लिए अब नया जतन आरंभ कर दिया। मजे की बात तो यह है कि इस प्रतिस्पर्धा में पिछडी एवीएल ने नेट्रिप को ही पत्र लिखकर निविदा मूल्यांकन में तब्दीली के सुझाव दे मारे।
चूंकि नेट्रिप की समस्त कठपुतलियों की डोर एवीएल के हाथों में ही थी, एवीएल जैसा चाहे उन्हें नचा रही थी, सो नेट्रिप ने 25 अगस्त को एक बैठक आहूत कर एवीएल के सुझावों को सर माथे पर रख उसकी मंशा के मुताबिक ही निर्णय ले लिया। नए पैमानों पर पुन: मूल्यांकन किया गया तो बीईपी जो दो अंक से ज्यादा से आगे थी वह एवीएल से .16 अंक पीछे आ गई।
इस तरह भारी उद्योग मंत्रालय में एक बहुत भारी घपला हुआ है, जिसकी अगर निष्पक्ष जांच की जाए तो अनेक व्हाईट कालर जनसेवकों की भ्रष्टाचार से सडांध मारती गंदी मैली कालर सामने आ सकती हैं। चूंकि मामला जनता से सीधा जुडा नहीं है, इसे उठाने से सत्ता पक्ष या विपक्ष को फौरी तौर पर कोई लाभ होने वाला नहीं है, इसलिए यह मामला ठंडे बस्ते के हवाले हो जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।