सोमवार, 30 नवंबर 2009

इस रात की सुबह नहीं . . .

इस रात की सुबह नहीं . . .





(लिमटी खरे)




पच्चीस साल का वक्त कम नहीं होता, 25 बरस में एक पीढी पूरी तरह जवान और परिपक्व हो जाती है। इन पच्चीस सालों में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के रहवासी आज तक अपने अधिकारों की लडाई लडने पर मजबूर हैं, सरकारें आती गईं, निजाम बदलते रहे पर आज भी भोपाल गैस त्रासदी के पीडित पथराई आखों से सरकारों को देख रहे हैं।


1984 में 2 और 3 दिसंबर की दर्मयानी रात में समूचे विश्व की सबसे बडी औद्योगिक त्रासदी ने जन्म लिया था। यूनियन काबाZईड से रिसती कीटनाशक मिथाइल आईसोसाईनेट (मिक)ने जो कहर बरपाया था, आज भी भोपाल उससे उबर नहीं सका है। पुराने भोपाल के यूनियन काबाZइड के इस प्लांट में टेंक नंबर 610 में तकरीबन 42 टन मिथाइल आईसोसाइनेट गैस भरी हुई थी।



बताते हैं कि उस समय इस टेंक में पानी चले जाने के कारण हुई रासायनिक क्रिया के चलते टेंक का तापमान 200 डिग्री के करीब पहुच गया था। चूंकि टेंक इतना अधिक तापमान सहने की स्थिति में नहीं था लिहाजा रात दस बजे टेंक के वाल्व खोल दिए गए थे। परिणामस्वरूप जहरीली गैस हवा में मिल गई। इन गैस के बादलों में मिक के अलावा नाईट्रोजन आक्साईड, कार्बन डाय आक्साईड, मोनो मिथाईल अमीन, कार्बन मोनो आक्साईड, फास्जीन हाईड्रोजन क्लोराईड जैसी गैसें भी थीं, जिनके चलते हजारों लोग कभी न जागने वाली नींद में सो गए और आज भी इस गैस त्रासदी का दंश झेलने को मजबूर हैं, न जाने कितने लोग।


आधे घंटे के अंदर ही आसपास के क्षेत्र के लोगों की आंखों में जलन, दम घुटने, कफ बनने, फेंफडों में जलन अंधापन आदि की शिकायत होने लगी। रात एक बजे पुलिस ने मोर्चा संभाला, किन्तु यूनियन काबाZईड ने गैस रिसाव से इंकार कर दिया। 25 बरस पहले 3 दिसंबर को रात दो बजे पहला मरीज दाखिल किया गया। इसके बाद दो बजकर दस मिनिट पर खतरे का सायरन बज उठा।


अलह सुब्बह चार बजे गैस रिसाव पर काबू पा लिया गया। महज छ: घंटों में ही इस गैस ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के तकरीबन दस हजार लोगों को मौत के आगोश में ढकेल दिया और इसके बाद कालांतर में मरने वालों की तादाद लगभग 35 हजार हो गई।



सरकारी आंकडों पर गौर फरमाएं तो 3787 लोग इस हादसे में असमय ही काल के गाल में समा गए थे, जबकि दूसरे स्त्रोत साफ तौर पर इस बात को इंगित करते हैैं कि इसमें लगभग दस हजार लोग मारे गए थे। इसके बाद एक के बाद एक कर गैस जनित रोगों के चलते 25 हजार से अधिक लोग काल कलवित हो चुके हैं। मौटे तोर पर यह बात सामने आ चुकी है कि लगभग पांच लाख लोग गैस प्रभावित हैं आज भी।


पिछले साल अक्टूबर तक 10 लाख 29 हजार 517 मामले पंजीबद्ध किए गए थे, जिसमें से गैस के मुआवजे के लिए 5 लाख 74 हजार 366 मामलों को मुआवजे के लिए चििन्हत किया गया था। इस अवधि में 1549 करोड रूपए के लगभग मुआवजा भी बांट दिया गया है।


यूनियन काबाZइड के चेयरमेन वारन एंडरसन आज बुजुर्ग और अशक्त हो चुके हैं। भारत के जनसेवकों के राजतंत्र की व्यवस्था देखिए कि इन 25 सालों में भारत और प्रदेश सरकार द्वारा एंडरसन और उसके सहयोगियों को कभी भी कानूनी तौर पर कटघरे में खडा नहीं किया जा सका है।


गैस प्रभावित लोगों को आज भी सांस लेने में तकलीफ, अंधापन, आंखों, सीने में जलन, उल्टी की शिकायत आम है। इतना ही नहीं गैस के दुष्प्रभाव दीघZकालिक होने के कारण केंसर और वंशानुगत घातक रोगों की जद में हैं, राजधानी के पांच लाख लोग।



पच्चीस सालों में मंथर गति से चलते राजनैतिक समीकरणों में सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह रहा है कि दुनिया के सबसे खौफनाक औद्योगिक हादसे के बावजूद भी किसी भी सियासी दल ने आज तक इस मामले को राजनैतिक तौर पर चुनावी मुद्दा नहीं बनाया है।


गैस राहत के नाम पर भोपाल में अस्पताल अवश्य खोल दिए गए हैं। इसके साथ ही साथ गैस पीडितों को चििन्हत करने के लिए विशेष अदालतों की स्थापना भी की गई है। इससे गैस पीडितों को वाजिब हक मिला हो या नहीं पर बिचौलियों की तबियत से चांदी हो गई है।



सरकार द्वारा गैस के दुष्प्रभाव पर शोध करने के लिए अनेक शोध करवाए हैं, विडम्बना ही कही जाएगी कि करोडों खर्च करने के बावजूद भी नतीजा सिफर ही है। 1985 से 1994 के बीच हुए पहले शोध का ही सरकार द्वारा खुलासा नहीं किया गया है, जो फिर आने वाले समय की कौन कहे।


गैस के दीघZकालिक प्रभावों का अध्ययन 24 साल से जारी है, किन्तु इस बारे में कोई ठोस राय सामने नहीं आ सकी है। बीमारियों के संक्रमण और वंशानुगत प्रभावों और जटिल बीमारियों को भुगत रहे परिवारों को राहत कब मिल सकेगी यह बात आज भी भविष्य के गर्भ में ही छिपी हुई है।

युवराज की साफगोई







ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
युवराज की साफगोई
कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री और कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी ने बडे ही सहज तरीके से स्वीकार किया है कि वे राजनीति में इसलिए आए हैं, क्योंकि उनका परिवार राजनीति में है। दूसरी तरफ राहुल गांधी परिवारवाद की सख्त मुखालफत भी करते हैं। वे कहते हैं कि कांग्रेस में नेता वही बनेगा जिसके पीछे जनता होगी। चुम्बक के उत्तर दक्षिण धु्रव का मिलन अगर कहीं होते दिख रहा है तो वह है कांग्रेस के सर्वशक्तिमान महासचिव राहुल गांधी के बयानों में। परिवारवाद कांग्रेस में नहीं होगा, किन्तु वे इसलिए राजनीति में आए हैं क्योंकि उनका परिवार राजनीति में है। यह 21वीं सदी का भारत देश है, इसमें हर भारत वासी चाहता है कि देश में भगत सिंह पैदा हो, पर अपने नहीं पडोस के घर में, ताकि शहीद हो तो अपने बजाए पडोसी का बेटा। अरे राहुल गाध्ंाी को अगर मिसाल ही देनी थी, तो वे राजनीति को तिलांजली देकर जता देते कि परिवारवाद के सख्त खिलाफ है कांग्रेस का पायोनियर नेहरू गांधी परिवार। क्या करें पीढी दर पीढी कांग्रेस की सत्ता इसी परिवार को हस्तांतरित होती जो रही है। 21वीं सदी में कांग्रेस आज भी सामंतशाही परंपरा को ढो रही है, जो आश्चर्यजनक है।
ओवर नाईट को राजनीति की लाल झंडी
रेल मंत्री ममता बनर्जी भले ही स्वयंभू मेनेजमेंट गुरू और पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव से आगे निकलने के जतन कर रही हों पर कांग्रेस उनके इस अभियान में पलीता लगाने से नहीं चूक रही है। मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से भोपाल चलने वाली ओवर नाईट एक्सप्रेस को प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर तक के लिए बढाने की घोषणा की जा चुकी है। 1 नवंबर से इसे आरंभ भी करना था। इसके लिए इस रेल का समय भी रात 11 से घटाकर साढे दस कर दिया गया है। मजे की बात तो यह है कि इसका विस्तार इंदौर तक करने की कोई घोषणा अब तक नहीं की गई है। बताते हैं कि इसके पीछे कांग्रेस की उहापोह की स्थिति जिम्मेवार है। दरअसल प्रोटोकाल के अनुसार रेल को आरंभ या गन्तव्य के संसदीय क्षेत्र वाला सांसद हरी झंडी दिखाकर रवाना करता है। भोपाल, इंदौर और जबलपुर में भाजपा के सांसद हैं। अगर इसे आरंभ किया गया तो फिर वाहवाही भाजपा के खाते में जाएगी। प्रदेश में वाणिज्य उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और सडक परिवहन मंत्री कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र से आरंभ होने वाली रेल गाडियां कब की आरंभ हो चुकी हैं, पर संस्कारधानी को औद्योगिक राजधानी से जोडने के लिए महूर्त की तलाश जारी है।
महारानी का नया पैंतरा
राजस्थान की महारानी एवं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की सियासत आज तक कोई समझ नहीं सका है। राजस्थान में राजपाट गंवाने के बाद राज्य में विपक्ष के नेता से हटाने के लिए उनके विरोधियों ने एडी चोटी एक कर दी, पर महारानी हैं कि डिग भी नहीं रहीं हैं। वसुंधरा राजे ने बडी ही चतुराई के साथ अपना त्यागपत्र भाजपा नेतृत्व को तो भेज दिया, किन्तु उस त्यागपत्र की प्रति विधानसभा अध्यक्ष को अब तक नहीं भेजी है। वसुंधरा जानतीं हैं कि स्थानीय निकायों के चुनावों के चलते पार्टी अभी उन पर कोई कार्यवाही नहीं करने वाली, फिर आ जाएगा नेशनल प्रेजीडेंट चुनने का काम। सो इस साल के अंत तक तो वे अपनी कुर्सी बचा ही पाएंगी। इस तरह वे अपने विरोधियों को चारों खाने चित्त करने में सफल हो जाएंगी। औपचारिकता पूरी करने के लिए पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने राजे को संदेश जरूर भिजवा दिया है कि वे जल्द ही अपना त्यागपत्र विधानसभाध्यक्ष को सौंप दें, वरना उनके खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है।
बापू के दुदिZन
विवाद है कि स्वयंभू आध्याित्मक संत आशाराम बापू का पीछा छोडने को तैयार नहीं है। पिछले दिनों उनके आश्रमों में संचालित गुरूकुलों में संदेहास्पद अवस्था में मिलने वाली छात्रों फिर शिक्षिका के शव से वे विवादों में घिरे रहे, और अब अहमदाबाद में उनके समर्थकों द्वारा पुलिस से सीधा संघर्ष करने के आरोप मेें जलालत झेलनी पड रही है। आसाराम बापू के समर्थन में योग वेदांत समिति के द्वारा गांधी नगर में निकाली गई रेली में कुछ तत्वों ने पुलिस पर पथराव कर दिया। घायल पुलिस कर्मी उस वक्त तो लाठी भांजते रहे, फिर बाद में पुलिस ने उनके आश्रम में छापामार कार्यवाही की। इसका विरोध करने पर पुलिस ने तबियत से लाठियां बरसाईं। इस मामले को मीडिया ने जिस तरीके से पेश किया है, उससे जनता का मानस बापू के विरोध में ही बनता दिख रहा है। साधकों और पुलिस की इस भिडंत ने एक बार फिर आशाराम बापू को चर्चाओं के साथ विवादित करना आरंभ कर दिया है।
नाथ छाए रहे मध्य प्रदेश में

मध्य प्रदेश की फिजां में पिछले दिनों नाथ का दबदबा साफ तौर पर दिखाई दिया। एक तो स्थानीय निकाय चुनाव में ताकत दिखाकर कमल नाथ ने एक बार फिर कमाल कर दिया है, वहीं दूसरी ओर लव गुरू मटुक नाथ भी झीलों के शहर भोपाल पहुंचे। काफी समय से मध्य प्रदेश के राजनैतिक परिदृश्य से नदारत रहने वाले केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने इस बार प्रदेश में आए बिना ही अपने ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को उपकृत कर दिया है। उनके समर्थकों को टिकिट किस तरह मिली इस बारे में शोध कांग्रेस में ही चल रहा है। वहीं दूसरी ओर बाबा ऋषि दास द्वारा लिखी गई ``विवाह एक नैतिक बलात्कार`` के विमोचन हेतु लव गुरू मटुक नाथ अपनी ``मेनका`` जूली के साथ भोपाल पहुंचे जहां हिन्दुवादी संगठनों ने उन्हें आडे हाथों लिया और बाबा को तबियत से घुन दिया। पुलिस ने लवगुरू और जूली को किसी तरह बचाकर वहां से बिदा किया।
हाई मास्ट खंबे सहित चोरी!
दिल्ली में नगर पालिका निगम किस कदर बेसुध पडा हुआ है, इसका ताजा तरीन उदहारण झिलमिल वार्ड में देखने को मिला। यहां मुकेश नगर के एक पार्क में लगा चालीस फुट खम्बा और मंहगी हाई मास्ट लाईटें चोर चुराकर ले गए मगर निगम को पता तक नहीं चला। वैसे भी यमुना पार में चोरों के हौसले जबर्दस्त बुलंदी पर हैं। इस घटना की जानकारी अब कि दिल्ली नगर निगम प्रशासन को नहीं है, इस मामले की एफआईआर तक दर्ज नहीं करवाई गई है। बताया जाता है कि पूर्व में डिस्यूज केनाल मास्टर प्लान मार्ग, गीता कालोनी और कृष्णा नगर से हाई मास्ट चोरी की जा चुकीं हैं। सत्ता के मद में मदस्त महापौर सहित निगम के पार्षदों को इस तरह की वारदातों से लेना देना नहीं है। हो सकता है लाखों करोडों के वारे न्यारे करने वाले निगम में बैठे इन जनसेवकों को दो लाख रूपए के बिजली के खंबे और हाई मास्ट लाईट का मोल कम ही लग रहा हो, किन्तु मोहल्ले के बीचों बीच से खम्बा और लाईट एक साथ चोरी होने की यह पहली घटना ही होगी।
यूपी निगल रहा है बच्चे!
यूनीसेफ से बाल मित्र का तगमा पाने वाला उत्तर प्रदेश का पुलिस महकमा इन दिनों बुरी तरह असहाय ही नजर आ रहा है। यूपी पुलिस बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों पर अंकुश लगाने में अपने आप को पूरी तरह असफल नजर आ रहा है। सूबे मेें समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों ही कमजोर विपक्ष के तौर पर अपनी अपनी भूमिकाएं निभा रहे हैं। इस साल उत्तर प्रदेश से हर माह 11 बच्चे गायब हुए हैं, जो अपने आप में एक रिकार्ड माना जा सकता है। वैसे भी यूपी का निठारी गांव पहले ही बच्चों की हडि्डयां उगल चुका है। बावजूद इसके दिल्ली के सिंहासन पर नजर गडाने वाली बसपा चीफ एवं सूबे की निजाम मायावती चैन की बंसी बजा रहीं हैं। उत्तर प्रदेश के हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि उत्तर प्रदेश में अराजकता ही शासन कर रही है।
विधानसभा उपाध्यक्ष की सुध ले लें प्रदेशाध्यक्ष
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं मध्य प्रदेश के कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष को जेड प्लस की सुरक्षा नहीं मिल पाने को लेकर प्रदेश कांग्रेस ने भाजपा सरकार को आडे हाथों लिया है। पुलिस की अकर्मण्यता के चलते इंदौर के एयरपोर्ट पर बवाल पर उतारू कांग्रेस कार्यकर्ताओं को काबू में करने सुरेश पचौरी ने एक कार्यकर्ता को झापड जड दिया। इस मामले में कांग्रेस की राजनीति के चाणक्य दिग्विजय सिंह ने यह कहकर हवा दे दी कि अध्यक्ष पिता की तरह होता है, अगर लाफा (झापड) मार भी दिया तो इसे इश्यू क्यों बनाया जा रहा है। बहरहाल 23 नवंबर को प्रदेश कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष और सूबे की विधानसभा के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह दक्षिण एक्सप्रेस से दिल्ली से भोपाल आए, वह भी एसी थर्ड क्लास से। उनके साथ उनका सुरक्षा घेरा नहीं था। भाजपा को कोसने के पहले पीसीसी के आलंबरदार अगर संवैधानिक पद पर कब्जा जमाए सिंह की सुरक्षा के बारे में चिंता करे तो ज्यादा बेहतर होगा। अमूमन जनसेवकों द्वारा अपने सुरक्षा कर्मियों को साथ ही नहीं रखा जाता है। जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त नेता तो बुलट प्रूफ कार का प्रयोग करने से भी कतरात हैं, क्योंकि इसके कांच नहीं खुलते और मार्ग में वे कार्यकर्ताओं से रूबरू नहीं हो पाते हैं, और दोष मढ दिया जाता है पुलिस व्यवस्था पर।
मतलब जानबूझकर लगाई गई थी आग!
राजस्थान के जयपुर में पिछले दिनों आयल टेंक में लगी आग से सभी डरे हुए हैं। शहरों के आसपास डीजल पेट्रोल बडी मात्रा में एकत्र रहता है। जयपुर के सीतापुर औद्योगिक क्षेत्र में इंडियन आयल के डिपो में लगी आग के बारे में कहा जा रहा है कि वह आग दुघZटनावश नहीं वरन जानबूझकर लगवाई गई थी। पेट्रोलियम मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि मंत्रालय के जांच दल ने निरीक्षण के बाद यह पाया कि दाल में कुछ काला जरूर है। सूत्र कहते हैं कि पेट्रोल डिलेवरी पाईप के तीनों वाल्व वैसे तो कम स्तर पर खोले जाते हैं, किन्तु उस समय उन्हें उच्च स्तर पर खोला गया था। इस जांच के बाद शुरू होगा बचने बचाने का गंदा खेल। कोन दोषी कौन नहीं यह तो जांच के बाद सामने आएगा, किन्तु इससे देश का अरबों रूपए का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई जनता की जेब पर करारोपण के द्वारा ही की जाएगी, इस बात में कोई संदेह नहीं।
मीडिया की औकात बीस रूपए
दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में इस बार मीडिया ने जितनी जलालत झेली उतनी शायद पहले कभी न झेली होगी, फिर भी चुप ही रहा। हर बार की तरह इस बार भी मीडिया में व्यापार मेला कव्हर करने वाले पत्रकारों के पास बनाए गए थे। मीडिया को कार्ड बनवाने के लिए अपने संस्थान के परिचय पत्र की छाया प्रति, अंगूठे का निशान, सफेद पृष्ठभूमि वाले तीन फोटो, कद काठी का पूरा माप, पहचान चिन्ह आदि अनिवार्य तौर पर चाहा गया था। संभवत: मेला आयोजकों को डर था कि अनवांटिड एलीमेंटस और आतंकी मीडिया के भेष में अंदर प्रवेश कर सकते हैं। भले मानुषों को कौन बताए कि किसी को प्रवेश करना ही होगा तो वह टिकिट काउंटर से बीस रूपए का प्रवेश टिकिट लेकर प्रवेश न कर जाएगा।
राजनाथ, आडवाणी आमने सामने

जैसे जैसे पदों को तजने का समय आ रहा है वैसे वैसे लोकसभाा में नेता प्रतिपक्ष एल.के.आडवाणी और भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह अपनी अपनी तलवार पजाते जा रहे हैं। दोनों ही के खेमे अपना अपनी अपनी जमीन मजबूत करने की जुगत लगा रहे हैं। गौरतलब होगा कि इस साल के अंत तक भाजपाध्यक्ष चुन लिया जाएगा फिर उसके बाद आडवाणी पर नेता प्रतिपक्ष पद छोडने का दवाब बढ जाएगा। पद छोडने के बाद दोनों ही नेता इस जुगत मेें हैं कि उन्हें कोई सम्मानजनक प्लेटफार्म मिल जाए। दोनों ही जानते हैं कि संघ के इशारे के बिना यह संभव नहीं होगा, इसलिए दोनों ही नेताओं ने संघ में अपने अपने संपर्कों को जगाने का काम आरंभ कर दिया है। अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में राजनाथ सिंह पूरी गर्मजोशी के साथ हर प्रोग्राम में शिरकत कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आडवाणी को संघ ने मौन रहने का मशविरा दिया है। अब लोगों की निगाहें इस पर टिकी हैं कि संघ का वरद हस्त किसके सर होगा।
पुच्छल तारा
उत्तर भारतियों पर आंतक बरपाने वाले मध्य प्रदेश मूल के ठाकरे ब्रदर्स के बारे में अब लोग तरह तरह की बातें कहने लगे हैं। एक पाठक ने हमें एसएमएस किया है कि मराठियों के हित साधने का स्वांग करने वाले बाला साहेब ठाकरे और राज ठाकरे को अगर नहीं रोका गया तो आने वाले समय में वे बैंक में जाकर मराठी में छपे नोट की मांग करें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।