रविवार, 20 सितंबर 2009

अपने दादा को भूले राहुल!

ये है दिल्ली मेरी जान










(लिमटी खरे)










जिनके कारण गांधी सरनेम मिला उसी को भूले उनके वारिसान









नेहरू गांधी के नाम को भजने वाली कांग्रेस में नेहरू गांधी परिवार की चौथी और पांचवीं पीढ़ी उसी शिक्सयत को भूल गई जिनके कारण उन्हें गांधी नाम मिला। जवाहर लाल नेहरू की पुत्री पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा ने जब फिरोज गांधी से शादी की तब ही वे इंदिरा गांधी कहलाईं। स्व.फिरोज गांधी के 98वें जन्म दिवस पर न तो टीम टाम ही दिखा और न ही कांग्रेस ने उन्हें ``अश्रुपूरित`` श्रद्धांजली ही अर्पित की। राजधानी में रायबरेली संदेश की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम का हवाला अवश्य ही चंद समाचार पत्रों के अंदर के पेजों पर संक्षेप में मिला, जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस की राजनीति के आधुनिक चाणक्य कुंवर अर्जुन सिंह को सादगी सम्मान से नवाजा गया। पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी आदि के जन्म दिवसों पर सरकारी तंत्र का अहम हिस्सा दूरदर्शन भी इस परिवार की छटी पीढ़ी (प्रियंका वढ़ेरा के बच्चों) तक को कवरेज देता है, किन्तु जब बात फिरोज गांधी या संजय गांधी की होती है तब कांग्रेस का सौतेलापन समझ से परे ही नजर आता है। लगता है गांधी के उपनाम से सोनिया और राहुल शोहरत और ताकत की बुलंदियां छूना अवश्य चाहते हैं किन्तु जिस फिरोज गांधी के नाम से उन्हें गांधी उपनाम मिला उन्हें याद रखने में इन्हें काफी कठिनाई हो रही है। कहने वाले तो कहने से भी नहीं चूकेंगे कि राहुल गांधी से तो वरूण फिरोज गांधी ही भले जो अपने दादा जी को कम से कम नहीं भूले। वैसे भी हिन्दु मान्यताओं के अनुसार पितरों में अपने पूर्वजों को कम से कम जल का तर्पण किया जाता है, यहां तो हद ही हो गई जबकि पितृ पक्ष में पड़े फिरोज गांधी के जन्म दिवस को ही उनके कांग्रेसी वारिसान भूल गए।





एसी कैसी मितव्ययता!





कांग्रेस के दो मंत्री एम.एस.कृष्णा और शशि थुरूर के पांच सितारा होटल में रहने के चलते उपजा विवाद अब तक शांत नहीं हो सका है। इसमें नित्य ही कोई न कोई फलसफा जुड़ता ही जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने इकानामी क्लास में सफर कर मिसाल पेश की। उनके पुत्र राहुल गांधी ने शताब्दी में यात्रा कर एक बेहतर संदेश दिया। यह अलहदा बात है कि सोनिया के लिए इकानामी क्लास की दस सीटें बुक कराकर खाली रखी गईं थीं, और राहुल के लिए शताब्दी की पूरी बोगी। जिस जहाज में कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी सफर कर रहीं थीं, उसमें कांग्रेस के एक सांसद सुरेश तावरे बिजनिस क्लास में यात्रा कर रहे थे। तावरे का कहना था कि व्यस्तता के चलते वे अपनी ही पार्टी की सुप्रीमो के इस लोकलुभावने कदम की जानकारी से वंचित थे। कभी सोनिया की तारीफ करते न थकने वाले लालू यादव ने भी जहर बुझा तीर चलते हुए कह ही डाला के सादगी के लिए मनमोहन और सोनिया गांधी को रेल से यात्रा करनी चाहिए, वह भी सामान्य श्रेणी में, इससे लोगों के बीच एक अच्छा संदेश जाएगा। एक ओर सोनिया मितव्ययता की अलख जगा रही हैं, वहीं दूसरी ओर दिल्ली सरकार के कांग्रेस के एक मंत्री के सरकारी आवास के रखरखाव और साजसज्जा के लिए तीस लाख रूपए व्यय का प्रस्ताव मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पास पहुंचा है। क्या इस तरह का आडंबर जनता के दिखावे के लिए ही है





यू जस्ट कांट बीट जसवंत





भले ही पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह को भाजपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया हो पर जसवंत तो जसवंत ही हैं। हर बाल को बाउंड्री के बाहर भेजने का माद्दा रखते हैं जसवंत सिंह। संसद की लोक लेखा समिति के अध्यक्ष पद से हटाए जाने की भाजपा की पुरजोर मांग से बिना विचलित हुए जसवंत ने अपना काम आगे बढा दिया है। उन्होंने रोजगार गारंटी और मध्यान भोजन के क्रियान्वयन सहित अनेक मुद्दों पर विचार विमर्श के लिए एक दो नहीं वरन् छ: उपसमितियों का गठन कर डाला है। लोक लेखा समिति के अध्यक्ष पद पर जसवंत के अंगद के पैर को देखकर भाजपा भी बेकफुट पर आ गई है। पिछले एक पखवाड़े में भाजपा द्वारा जसवंत के खिलाफ एक भी बयान जारी नहीं किया है। सच ही है डर सभी को होता है, पता नहीं एक बार फिर अगर भाजपा द्वारा जसवंत को कोसा गया तो वे न जाने कोन सा ब्रम्हास्त्र चला दें। वैसे भी अंदरूनी तौर पर भाजपा में मचे घमासान के बाद भाजपा नेतृत्व कोई ठोस निर्णय नहीं ले पा रहा है।





माया मेमसाहब के तीखे तेवर





बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो और यूपी की चीफ मिनिस्टर सुश्री मायावती ने अब स्मारकों और प्रतिमाओं के बारे में विपक्षी दलों के हमलों के बाद आक्रमक तेवर अिख्तयार कर लिए हैं। बसपा कार्यकर्ताओं को परोक्ष तौर पर उकसाते हुए माया मेमसाब ने कहा कि उनकी सरकार द्वारा बनवाए गए स्मारक या प्रतिमाओं को अगर तोड़ा गया तो समूचे देश में राष्ट्रपति शासन लगाने की नौबत आ सकती है। कांग्रेस को भी खरी खोटी सुनाते हुए मायावती ने यह तक कह डाला कि कांग्रेस को एक परिवार के अलावा देश में और कोई महापुरूष ही नजर नहीं आता है। मायावती के तीखे तेवरों से समाजवादी पार्टी और कांग्रेस सकते में ही दिख रही है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल सोच रहे थे कि इसका विरोध कर वे मायावती को घेरने में कामयाब हो सकेंगे, किन्तु जब शेरनी दहाड़ी तो बाकी सारे शेर ``म्याउं म्याउं`` करते ही दिख रहे हैं।





उड़न खटोलों से परेशान नेता





हर चुनाव में हेलीकाप्टर की सवारी करना नेताओं का प्रिय शगल रहा है। इसका कारण यह है कि आप टिकिट खरीदकर हवाईजहाज में तो यात्रा कर सकते हैं, किन्तु अगर हेलीकाप्टर की सवारी गांठना हो तो उसे किराए पर ही लेना होता है। हेलीकाप्टर की सवारी में जब डेस्टीनेशन प्वाईंट (उतरने का स्थान) गुम जाए तो बेहद ही परेशानी का सामना करना पड़ता है, इस दौरान अनेक नेताओं को शर्मसार भी होना पड़ता है। इसी तरह का कुछ वाक्या केंद्रीय मंत्री सलमान खुशीZद के साथ बीते दिनों घटा। बिहार में सहसरा के सिमरी बिख्तयारपुर गांव में एक जनसभा को संबोधित करने गए खुशीद। चौपर डेस्टीनेशन प्वाईंट से भटककर एक सभा स्थल के पास बने हेली पेड पर उतर गया। नेताजी जैसे ही बाहर निकले उन्हें लालू और मुलायम के जिंदाबाद के नारे सुनाई दिए। माजरा समझ नेताजी उल्टे पांव वहां से कूच कर गए। दरअसल खुशीद को उतरना इस्लामियां स्कूल में था और पायलट ने उन्हें उतार दिया हाई स्कूल मैदान में। एक तरफ चौपर की सवारी जहां मौजां करवाती है, वहीं सावधानी हटी दुघटना घटी की तर्ज पर कई बार लानत मलानत भी भिजवा देती है।





मेडम के जलजले





वर्तमान समय की राजनीति मेें मदाम या मैडम शब्द का उच्चारण होते ही या तो सोनिया गांधी या फिर मायावती का चेहरा जेहन में आना स्वाभाविक है। भारतीय जनता पार्टी में अब मेडम कहते ही एक नया चेहरा सामने आने लगा है। भाजपा की लाख कोशिशों के बाद भी अपनी जगह अडिग खड़े रहने वाली राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को अब लोग मेडम के नाम से जानने लगे हैं। दरअसल वसुंधरा का त्यागपत्र का एपीसोड अभी जारी है, सो लोगों को उनके पक्ष और विपक्ष में मुंह बजाने के लिए ढेर सारे मेटर मिल रहे हैं। लोग अब यह कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि जिस महिला ने केंद्रीय नेतृत्व को जूती की नोक पर रखा है, वह प्रदेश के संगठन को कांखों में दबाकर रख देगी। राजस्थान भाजपा में वसुंधरा के विरोधी इस समय काफी दहशत में हैं, क्योंकि अब वहां यह बयार चलने लगी है कि आने वाला कल मेडम का है, सो जो भी बोलना सोच समझकर ही बोलना, वरना किसी भी अनिष्ट के लिए तैयार रहना।





लालू ने दिखा दी अपनी ताकत





एक समय के स्वयंभू मेनेजमेंट गुरू लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस सहित बाकी दलों को अपनी उपस्थिति का एक बार फिर दमदार अहसास कराया है। हाल ही में हुए उपचुनावों में बिहार में 18 में से पांच सीटें उन्होंने झटककर साबित कर दिया है कि बिहार में अभी उनका तिलिस्म टूटा नहीं है। उधर राजधानी दिल्ली में ओखला सीट पर लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार आसिफ मोहम्मद खान ने अप्रत्याशित जीत हासिल कर यहां अपना खाता खोल दिया है। कल तक आम चुनावों में कमजोर प्रदर्शन के कारण चुप्पी ओढ़ने वाले लालू प्रसाद यादव का सीना अब चौड़ा हो गया है। आने वाले समय में वे एक बार फिर कांग्रेस के साथ समझौते की मुद्रा में आ जाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उधर कहा जा रहा है कि ओखला में कांग्रेस की हार का कारण और कोई नहीं अजहरूद्दीन हैं। जी हां, एक सभा के दौरान मतदाताओं ने फरमाईश कर दी कि जब तक अजहर उन्हें आटोग्राफ नहीं देंगे तब तक वे कांग्रेस को वोट नहीं देंगे। मरता क्या न करता की तर्ज पर अजहर ने ``भारतीय मुद्रा`` का अपमान करते हुए पचास रूपए से हजार रूपए के नोट पर अपने आटोग्राफ दिए। कहते हैं काफी मतदाता आटोग्राफ से वंचित रहे तभी कांग्रेस प्रत्याशी उनके मतों से महरूम रह गए।





मंत्री जी चुनाव में व्यस्त, फाईलें खा रहीं धूल





महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव के चलते सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री मुकुल वासनिक के कार्यालय में सूनसपाटा दिखाई दे रहा है। समाज के कमजोर और वंचित वर्ग के लोगों के उत्थान की वजीरे आला डॉ.एम.एम.सिंह की अपील भी वासनिक के कानों में नहीं गूंज रही है। इस विभाग की सात दर्जन से अधिक फाईलें मंत्री के कार्यालय में उनके अनुमोदन का इंतजार कर रही हैं। चुनाव परिणाम आने तक इनकी संख्या डेढ सौ पार कर जाने की उम्मीद जताई जा रही है। मंत्री के अनुमोदन के बिना अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए बनी योजनाएं भी ठप्प पड़ गई हैं। पिछड़ा वर्ग के दसवीं तक के बच्चों के लिए वजीफे के मामले में महज 11 लाख बच्चों को ही इसका लाभ मिल सका है, और डेढ़ करोड़ बच्चे अभी भी वजीफे का इंतजार कर रहे हैं। यद्यपि यूपीए सरकार की दूसरी पारी में इस विभाग को वरीयता के साथ रखा गया था, किन्तु जब सौ दिनी एजेंडा का रिपोर्ट कार्ड ही नहीं सार्वजनिक किया गया तो फिर भला मुकुल वासनिक की पेशानी पर क्यों बल पड़ने लगे।






उल्टे बांस बरेली के





कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की चहुंओर धूम मची हुई है। राहुल के अघोषित राजनैतिक गुरू राजा दिग्विजय सिंह उन्हें राजनीति के गोदे (अखाड़े) के बरीक खुर पेंच सिखा रहे हैं। कांग्रेस के चाणक्य समझे जाने वाले कुंवर अर्जुन सिंह की तलवार में अब धार नहीं बची है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में चाणक्य की भूमिका में दिग्विजय सिंह ही नजर आ रहे हैं। कई बार दांव उल्टे भी पड़ जाते हैं। महराष्ट्र के विदर्भ इलाके में कर्ज के बोझ से दबे एक किसान ने आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद उसकी पित्न कलावती के बारे में राहुल ने लोकसभा में पिछले साल विश्वास मत के दौरान जिकर किया था। विदर्भ जनांदोलन समिति के बेनर तले यह निर्णय लिया गया है कि कलावती को वणी विधानसभा से मैदान में उतरा जाएगा। यह सीट पूर्व में नरेश पुगलिया के वर्चस्व वाली रही है। कलावती के मैदान में उतरने की खबर से कांग्रेस में सन्नाटा पसर गया है, कि जिस कलावती के चर्चे राहुल बाबा की जुबान से निकले वही कांग्रेस के खिलाफ मैदान में ताल ठोंक रही है। उधर खबर है कि किरकिरी होने से बचने के लिए कांग्रेस संभवत: यह सीट समझौते के तहत राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की झोली में डाल सकती है।





तलवारों की खनक सुनाई दे रही है हिमाचल में





विधानसभा चुनावों के चलते हिमाचल प्रदेश की रणभूमि में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की सेनाओं का सजना आरंंभ हो गया है। एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप के साथ ही साथ मामले लादने उतारने का गंदा खेल भी चरम पर ही दिख रहा है। पहले कांग्रेसी नेता और केंद्रीय मंत्री वीरभद्र सिंह तथा उनकी पित्न प्रतिभा सिंह पर आपराधिक केस लदने से कांग्रेस बेकफुट पर आ गई थी। धूमिल सरकार द्वारा साम, दाम, दण्ड भेद की नीति के सहारे कांग्रेस पर प्रहार किए जा रहे हैं। उधर अब संभल चुकी कांग्रेस भी वीरभद्र के साथ ही खड़ी दिखाई दे रही है। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष ठाकुर कौल सिंह ने सूबे के मंत्रियों के खिलाफ मोर्चा खोलकर धूमल सरकर को रक्षात्मक मुद्रा में ला खड़ा किया है।








बात निकली है तो दूर तलक जाएगी . . .





पांच सितारा संस्कृति से चर्चाओं में आए विदेश महकमे के मंत्रियों एम.एस.कृष्णा और शशि थुरूर ने आलीशान होटलों में रहने के उपरांत यह कहकर तो अपनी खाल बचा ली है कि उसका भोगमान (बिल) वे निजी तौर पर भुगत रहे हैं, किन्तु सियासी हल्कों में अब यह बात तेजी से गूंज रही है कि भले ही यह भोगमान सरकारी, निजी या किसी अन्य उपकृत की जेब से गया हो किन्तु इसके देयक (बिल) अब तक क्यों सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। अमूमन जनसेवकों को पाई पाई का हिसाब देना होता है। भले ही दोनों ही करोड़पति या लखपति मंत्री आयकर दाता हों। आयकर को भारी भरकम रकम अदा करते हों, किन्तु जब उन्होंने यह कहा है कि इसका भोगमान निजी तौर पर भोग रहे हैं, तो उनका यह नैतिक दायित्व बनता है कि वे कितनी राशि उन्होंने अपने रूकने और खाने में व्यय की है, इसका हिसाब अवश्य दें। कहते हैं न कि बात निकली है तो दूर तलक जाएगी. . . ।





स्टयरिंग नहीं रिमोट है संघ के पास





भले ही भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष यह कह रहे हों कि भाजपा का स्टयरिंग संघ के पास नहीं है। भाजपा अपनी राह पर चलने स्वतंत्र है, किन्तु वस्तुत: एसा दिखाई नहीं पड़ रहा है। हाल ही में संघ के अप्रत्यक्ष हस्ताक्षेप से कुछ और कहानी सामने आ रही है। भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार भाजपा में संघ के बढ़ते हस्ताक्षेप ने वरिष्ठ भाजपाईयों की पेशानी पर चिंता की लकीरें उकेर दी हैं। पिछले कुछ समय से संघ द्वारा भाजपा के अंदरूनी मामलात में हस्ताक्षेप के अनेक मामले सामने आए हैं। एक वरिष्ठ भाजपाई ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर यह तक कह डाला कि भाजपा की अंदरूनी कलह का कारण संघ का हस्ताक्षेप ही है। हालात देखकर यह लगने लगा है कि भाजपा के नए निजाम पर भी संघ ही मुहर लगाएगा। संघ के सूत्रों की मानें तो संघ ने डेढ़ दर्जन से अधिक राज्यों से भाजपाध्यक्ष के लिए तीन तीन नामों का पेनल बुलवाया है, जिस पर दिल्ली में अक्टूबर माह के पहले हफ्ते होने वाली बैठक में चर्चा की जाएगी। भाजपाई यह कहते नजर आ रहे हैं कि भले ही भाजपा का स्टेयरिंग संघ के हाथ में न हो किन्तु रिमोट कंट्रोल तो बेशक संघ के पास ही है।





सैलजा के सहारे हरियाणा की वेतरणी पार करने की कोशिश में कांग्रेस





भले ही संसद में महिला आरक्षण बिल पास करवाने में कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी नाकाम रहीं हों किन्तु महिला होने के नाते उन्होंने महिलाओं का वाजिब हक दिलवाने का प्रयास जरूर किया है। पहले देश की पहली महिला महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, फिर पहली दलित महिला लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार के बाद अब हरियाणा में दलित कार्ड के तौर पर केंद्रीय शहीर आवास एवं गरीबी उन्नमूलन मंत्री सैलजा के सहारे हरियाणा पर कब्जा करने के प्रयास में दिख रहीं हैं कांग्रेस सुप्रीमो। कांग्रेस के चुनावी प्रबंधकों ने वरिष्ठ कांग्रेसियों को सैलजा के नाम पर राजी कर लिया है। कांग्रेस चाहती है कि सैलजा को उत्तर प्रदेश की निजाम मायावती के खिलाफ काट के तौर पर तैयार किया जाए। कांग्रेस के इस तीर ने हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की नींद उड़ा दी है। सूत्र बताते हैं कि अब हुड्डा कांग्रेस के आला नेताओं को सिद्ध करते नजर आ रहे हैं। हाल ही में उन्होंने उमर दराज कांग्रेसी अर्जुन सिंह की चौखट पर आमद दी। जल्द ही हुड्डा द्वारा अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह, कमल नाथ आदि से संपर्क कर हरियाणा की गद्दी बचाने की जुगत लगाने वाले हैं।





पुच्छल तारा





उत्तर प्रदेश की निजाम सुश्री मायावती इन दिनों काफी परेशान हैं। कारण यह है कि उनकी मंशा के अनुसार पार्क में उनके सहित महापुरूषों की प्रतिमाओं को लगाने के लिए अनुमति नहीं मिल पा रही है। समूचे उत्तर प्रदेश में पार्कों में ढकी प्रतिमाएं अनावरण के इंतजार में हैं। एसे में एक मनचले ने कहा कि यदि पार्क में महापुरूषों और बहन मायावती की प्रतिमाएं लगाने की इजाजत नहीं मिल पा रही हो तो पार्टी के कट्टर और कर्मठ कार्यकर्ताओं को चाहिए कि वे इन महापुरूषों का मौखटा लगाकर पार्क खुलने से बंद होने तक बारी बारी से खड़े हो जाया करें। इससे पार्टी सुप्रीमो मायावती की मंशा भी पूरी हो जाएगी और किसी से अनुमति लेने के चक्कर से भी बचा जा सकेगा।