रविवार, 16 अगस्त 2009

उपचुनाव में होगी राजा, महाराजा, नाथ और पचौरी की अग्निपरीक्षा

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

उपचुनाव में होगी राजा, महाराजा, नाथ और पचौरी की अग्निपरीक्षा

मध्य प्रदेश में गोहद और तेंदूखेड़ा और सोनकच्छ विधानसभा उपचुनावों में राजा दिग्विजय सिंह, महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही साथ सूबे के कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। प्रत्याशी चयन में कौन बाजी मारता है, इसे लेकर कयास लगाए जा रहे हैं। प्रत्याशी चयन को लेकर प्रदेश प्रभारी महासचिव बी.के.हरिप्रसाद भी जल्द ही सूबे के दौरे पर आने वाले हैं। गोहद में सिंधिया की राय को वजन देना हरिप्रसाद की मजबूरी होगी, किन्तु राजा दिग्विजय सिंह भी इस सीट पर नजरें गड़ाए हुए हैं। यह सीट यहां के विधायक माखनला जाटव की लोकसभा चुनावों के दौरान गोली लगने से हुई मृत्यु के कारण रिक्त हुई है। वहीं दूसरी और सुरेश पचौरी ने होशंगाबाद संसदीय क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि बनाया है, सो तेंदूखेड़ा में उनकी राय को किनारे नहीं किया जा सकता है। तेंदूखेड़ा विधायक उदय प्रताप सिंह होशंगाबाद से सांसद चुने गए हैं। इसी तरह सोनकच्छ विधानसभा में पूर्व विधायक और सांसद सज्जन वर्मा के चलते इस सीट पर उम्मीदवार केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की पसंद का हो सकता है। वैसे कांग्रेस के लिए तीनों सीटें प्रतिष्ठा का प्रश्न इसलिए भी हैं, क्योंकि तीनों ही सीटों पर कांग्रेस काबिज रही है।

सचमुच हीरो बने शिवराज

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को सूबे के लोग पांव पांव वाले भईया के नाम से जानने वालो की कमी नहीं है। एक आम ग्रामीण हिन्दुस्तानी की छवि को शिवराज सिंह चौहान ने अंगीकार किया है, जो तारीफेकाबिल ही कहा जा सकता है। सूबे में शिवराज ने जनता के दुखदर्द को समझा है, यही कारण है कि मध्य प्रदेश में जनता से जुड़ी योजनाओं को ईमानदारी से अमली जामा पहनाया जा रहा है। शिवराज सिंह चौहान दरियादिल हैं, इस बात का प्रमाण बीते दिनों देखने को मिला। मध्य प्रदेश की नेता प्रतिपक्ष श्रीमति जमुना देवी पिछले दिनों गुर्दे में संक्रमण के चलते बीमार हो गईं थीं। शिवराज सिंह को जैसे ही इस बात की जानकरी मिली उन्होंने दलगत राजनीति से उपर उठकर तत्काल उन्हें मुंबई भेजने के लिए राजकीय विमान उनके लिए न केवल मुहैया करवाया वरन् वे विमानतल तक स्वयं ही उन्हें बिदा करने भी गए। इसके उपरांत उन्होंने मुंबई जाकर जमुना देवी का हालचाल भी जाना। सूबे में शिवराज की इस हरकत से लोग बाग बाग हैं, कि सूबे का निजाम हो तो एसा जो दलगत राजनीति से उपर उठकर सच्ची मानवता की सेवा को अंगीकार किए हुए है।

कांग्रेंस के रास्ते पर चली भाजपा

अब तक कांग्रेस में ही खतो खिताब की राजनीति होती थी, वह भी एसी कि पत्र लिखने के बाद वह सोची समझी रणनीति के तहत आश्चर्यजनक तरीके से लीक कर दिया जाता था, फिर मचता था बवाल। लगता है कांग्रेस की इस परंपरा को भाजपा ने भी अंगीकार कर ही लिया है, पर थोड़ा संशोधन करके। जहां कांग्रेस में अपनी बात कहने के लिए पत्रों का सहारा लिया जाता रहा है, वहीं अब भाजपा में किताबों के जरिए सियासत गर्माने लगी है। वैसे कांग्रेस में पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर अर्जन सिंह पत्र लिखने में उस्ताद माने जाते रहे हैं, फिर उनकी किताबें भी खासी चर्चाओं में रही हैं। भाजपा में पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी की किताब ``माय कंट्री माय लाईफ`` फिर इसका उर्दू संस्करण `मेरा वतन मेरी जिंदगी` ने तूफान मचाया। हाल ही में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के विरोधियों द्वारा लिखी गई किताब भी जबर्दस्त चर्चाओं में है। पत्रकार अजीज बर्नी जब आड़वाणी की उर्दू वाली किताब के विमोचन पर मंच पर आसीन हुए तो संघ को नागवार गुजरा। बर्नी ने मुंबई आतंकी हमले के लिए संघ को जिम्मेदार ठहराया था। इसके साथ ही साथ हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह ने भी एक किताब लिखकर ताल ठोंक दी है।

चिंतन बैठक की खबरें भी होंगी लीक
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भारतीय जनता पार्टी की शिमला में होने वाली चिंतन बैठक के मसले पर भाजपा ने अपना स्टेंड साफ कर दिया है कि इस बैठक की प्रेस ब्रीफिंग नहीं होगी। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि यह पार्टी मंच का मामला है, अत: मीडिया को इसका ब्योरा उपलब्ध नहीं कराया जाएगा। पार्टी के इस रवैए से मीडिया में गहरी नाराजगी का आलम है। कुछ पत्रकारों ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से इसकी शिकायत की तो उन्हें अप्रत्याशित तौर पर जो जवाब मिला वह किसी स्कूप से कम नहीं है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि बैठक के ब्योरे भले ही पत्रकारों को महरूम रखा जाएगा, किन्तु अंदरखाने में पक रही खिचड़ी को विधिवत लीक करने वाले नेता भी तो बैठक में शिरकत करने वाले हैं। फिर भला पत्रकारों को चिंता किस बात की। गौरतलब होगा कि पूर्व में भाजपा की ही एक बैठक में साध्वी उमाश्री भारती ने पार्टी के कुछ नेताओं पर ऑफ द रिकार्ड खबरें लीक करने का सावर्जनिक तौर पर आरोप लगाया जा चुका है।
गणतंत्र और स्वाधीनता दिवस में अंतर नहीं समझ सके नेता
दिल्ली से राज्यसभा के रास्ते संसदीय सौंध तक पहुंचने वाले परवेज हाशमी के समर्थकों को शायद गणतंत्र दिवस और स्वाधीनता दिवस में अंतर मालून नहीं है। दिल्ली वासियों को स्वाधीनता दिवस के मौके पर और हाशमी को राज्य सभा में चुने जाने पर बधाई देने की गरज से बड़े होडिंग लगवाए गए हैं। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के सचिव अनीस मलिक और ताज मलिक द्वारा अपने चित्रों के साथ ही साथ कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी, वजीरेआला डॉ.एम.एम.सिंह, दिल्ली की निजाम शीला दीक्षित, सांसद संदीप दीक्षित, परवेज हाशमी आदि के चित्रों से युक्त बधाई के इस होर्डिंग में साफ लिखा हुआ है कि ``दिल्ली वासियों को गणंत (वास्तविक गणतंत्र) दिवस की हादिZक शुभकामनाएं``। कितने आश्चर्य की बात है कि लगभग सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस जो आधी सदी से देश पर राज कर रही है उसके नुमाईंदे गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस में फर्क ही नहीं कर पा रहे हैं।


घर वापसी की कवायद शुरू
2003 में जब मध्य प्रदेश में विधान सभा चुनावों में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी की जड़ें उखड़ गईं और भारतीय जनता पार्टी की तत्कालीन तेज तर्रार नेत्री उमाश्री भारती सत्ता पर काबिज हुईं तब सूबे के ब्यूरोक्रेट्स ने प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली की दौड़ लगाना आरंभ कर दिया था। 2004 में भारतीय प्रशासनिक और पुलिस सेवा के मध्य प्रदेश काडर के अधिकारियों की तादाद देखकर लगने लगा था कि छोटा मोटा वल्लभ भवन (राज्य सचिवालय) दिल्ली में ही न बन जाए। पांच साल की प्रतिनियुक्ति की अवधि समाप्त होने के उपरांत अब ब्यूरोक्रेट्स की घर वापसी आरंभ हो गई है। प्रदेश काडर की भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी एवं सिवनी में पुलिस अधीक्षक रहीं प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव को उनके मूल काडर में वापस भेज दिया गया है। गौरतलब होगा कि वे केंद्रीय विद्यालय संगठन में पांच सालों तक बतौर ज्वाईंट कमिश्नर पदस्थ रहीं थीं, उनका नाम सीबीएसई के अध्यक्ष के लिए भी जोर शोर से चलाया गया था।


जबर्दस्त खौफजदा हैं स्वाईन फ्लू से
मेिक्सको के रास्ते भारत आए स्वाईन फ्लू ने देशवासियों को खौफजदा कर रखा है। इलेक्ट्रानिक मीडिया ने लोगों की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलका दी हैं। महानगरों में लोग अब भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाने से बच रहे हैं। माल की रोनक घट गई है। यहां तक कि स्कूलों में भी जबरिया अवकाश घोषित कर दिए गए हैं। मुंबई में तो बाकायदा अनेक सिनेमाघरों में शो रद्द कर दिए गए हैं। मुंबई में होने वाला चार दिवसीय एनिमेशन फेस्टिवल 2009 भी स्थगित कर दिया गया है। इलेक्ट्रानिक मीडिया की चीख पुकार के बाद सरकार हरकत में आई और केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी को हस्ताक्षेप करते हुए मीडिया विशेषकर इलेक्ट्रानिक मीडिया से इस मसले में संयम बरतने की अपील की गई। सोनी की अपील कारगर साबित हुई और पिछले कुछ दिनों से इसका खौफ काफी हद तक कम दिखाई पड़ रहा है। सच ही है बेवजह तूल देकर मीडिया अगर किसी मामले को उछाले तो अफरा तफरी मचना स्वाभाविक ही है।


खत्म नहीं हुए भाजपा के बुरे दिन
आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की बुरी तरह भद्द पिटी है। इसके बाद भाजपा की बासी कढ़ी में फिर उबाल आने लगा है। भाजपा के नेता एक दूसरे पर लानत मलानत भेजने से नहीं चूक रहे हैं। भाजपा में अंदर ही अंदर यह सवाल जोर पकड़ने लगा था कि क्या कारण है कि भाजपा की दुर्गति के लिए जवाबदेह लोगों को दंडित करने के स्थान पर पुरूस्कृत किया जा रहा हैर्षोर्षो पार्टी के दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेताओं ने बाकयदा पत्र लिखकर अपनी पीड़ा व्यक्त की थी। इतना ही नहीं पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने तो पार्टी के सभी पदों से त्यागपत्र तक दे दिया था। उस वक्त इस असंतोष को पाटने के लिए पार्टी हाईकमान ने इन सारे सवालों के जवाब ढूंढने के लिए चिंतन बैठक करने का फैसला किया था। बदले हालातों में असंतुष्ट नेताओं की तबियत इसको लेकर नासाज सी नजर आ रही है। अब वे कहने लगे हैं कि देश में सूखे और स्वाइन फ्लू का कहर है और भाजपा के नेताओं के शिमला में सर जोड़कर बैठने का क्या ओचित्य है, जबकि चुनावों में काफी समय है।


स्वाइन फ्लू का ममला पहुंचा सर्वोच्च न्यायालय
स्वाइन फ्लू का आतंक अब हर जगह कहर बरपा रहा है। एक वकील दिलीप अण्णासाहेब ने प्रधान न्यायधीश के.जी.बालकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ में एक याचिका दायर की है, जिसमें जन्माष्टमी पर हांडी फोड़ और गणेशोत्व के कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। दिलीप ने कोर्ट से इसे आउट ऑफ टर्न सुनवाई का अनुरोध किया था। दिलीप का कहना था, कि इन उत्सवों में भीड़भाड़ सामान्य दिनों से कहीं अधिक रहा करती है, अत: स्वाइन फ्लू के वायरस तेजी से फैलने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। खण्डपीठ ने इसे तत्काल सुनने से खारिज करते हुए कहा है कि याचिका पर सामान्य तय प्रक्रिया के तहत ही विचार संभव हो सकेगा।

कहां कराएं अधिवेशन, असमंजस में कांग्रेस
लोकसभा चुनावों में अप्रत्याशित सफलता पाने के उपरांत अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का एक दिनी अधिवेशन होने वाला है। पहले खबर थी कि राजीव गांधी के जन्मदिन पर 20 अगस्त को यह सम्मेलन मुंबई में होने की खबर थी,, किन्तु बाद में यह महज अटकल साबित हुई। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि मुंबई में भयावह बारिश और इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के चलते इतना व्यापक आंदोलन मुंबई में कराना संभव प्रतीत नहीं हो रहा है। अब खबर है कि यह सम्मेलन देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में होगा। दिल्ली की निजाम शीला दीक्षित इन दिनों इस सम्मेलन की मेजबानी को लेकर काफी परेशान नजर आ रही हैं। इसका कारण यह है कि राष्ट्रमण्डल खेलों की तैयारियों के चलते दिल्ली के अधिकांश स्टेडियम की मरम्मत का काम चल रहा है। इसके साथ ही साथ ढाई तीन हजार आगंतुकों को ठहराने से लेकर खाने की व्यवस्था भी एक बड़ी चुनौति से कम नहीं है। बताते हैं कि शीला दीक्षित इस सम्मेलन को हरियाणा में कराने की जुगत में लगी हुईं हैं, ताकि उनके सर से यह बोझ उतरकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा के माथे पर डाल दिया जाए।


बिना ताली के ही हो गया पीएम का संबोधन
हर राजनेता की एक दिली ख्वाईश होती है कि वह लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित अवश्य करे। नेहरू गांधी परिवार से इतर डॉ.मनमोहन सिंह पहले एसे कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने लगतार छटवीं मर्तबा यह सौभाग्य पाया है। शायद यह पहला मौका होगा जबकि किसी वजीरे आजम ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने उद्बोधन में किसी भी तरह की कोई घोषणा नहीं की हो। पीएम के हाव भाव देखकर लग रहा था कि वे खासे दबाव में हैं। भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए जवाबदार पाकिस्तान का उल्लेख डॉ.एम.एम.सिंह के भाषण में न होना भी घोर आश्चर्य का विषय था। इसी तरह देश को स्वाधीनता दिलाने वालों का भी उन्होंने नमन किया, किन्तु उन्होंने इसमें भी नेहरू और गांधी को ही तवज्जो दी। पीएम ने महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, इंंदिरा गांधी, राजीव गांधी के नामों का ही उल्लेख किया। आजादी के मतवाले सुभाष चंद बोस और सरदार भगत सिंह से उन्होंने कन्नी ही काट रखी थी। जब पीएम ने खाद्य सुरक्षा कानून का जिकर किया तब सामने बैठे स्कूली बच्चों ने आधे अधूरे मन से ही ताली बजाई।



पुच्छल तारा
शेरशाह सूरी के जमाने के प्रमुख मार्ग जो राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात और ग्रान्ट नेशनल रोड़ के नाम से जाना जाता है, का एक बड़ा भाग स्विर्णम चतुभुZज के उत्तर दक्षिण गलियारे का हिस्सा बन चुका है। इस मार्ग से कुछ हटकर केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ का संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा भी है, जो मध्य प्रदेश महाराष्ट्र सीमा पर अवस्थित है। वर्तमान में यह मार्ग मध्य प्रदेश के सिवनी जिले से होकर गुजरना प्रस्तावित है। कुछ ताकतें इसे सिवनी के बजाए छिंदवाड़ा से होकर ले जाने पर आमदा हैं। एसे में सिवनी जिले के उत्साही नौजवान संजय तिवारी और भोजराज मदने के प्रयासों से गठित हुआ है ``जनमंच``। जनमंच के बेनर तले यह प्रयास जारी है कि इसे सिवनी से ही यथावत रखा जाए। इस हेतु जनमंच के कुछ सदस्य सर्वोच्च न्यायालय में हस्ताक्षेपकर्ता बनने की गरज से अपनी दूसरी दिल्ली यात्रा पर हैं। सिवनी वासी इन युवाओं के खासे शुक्रगुजार होंगे क्योंकि वे सभी सदस्य अपने स्वयं के व्यय पर दिल्ली जाकर एक ऐसे वकील को खोजने में सफल रहे हैं, जो बिना किसी मेहनताने के पूरा केस लड़ने को तैयार है। जनमंच अपने इस मिशन में कामयाब हो यह दुआ हर सिवनी वासी के दिल से निश्चित तौर पर निकल ही रही होगी।

16 AUGEST 2009

आलेख 16 अगस्त 2009

हिन्दी आजाद भारत की राष्ट्रभाषा है ममता जी,

(लिमटी खरे)

भारत की आजादी की 62 वीं वर्षगांठ पर भी हम आत्मनिर्भर न हो पाए हों तो आश्चर्य की बात है। 62 सालों के बाद एक बच्चा वृद्ध हो जाता है, और तो और सरकार भी 62 साल में अपने कर्मचारी को सेवानिवृत्त भी कर देती है। 62 साल का समय कम नहीं होता है।इन 62 सालों में हम देश की करंसी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं दिला सके, हिन्दी को राष्ट्रभाषा नहीं बना सके। आज भी लोग मन से हिन्दी बोलने में शरम महसूस ही करते हैं। क्षेत्रों में हिन्दी के बजाए अंग्रेजी को ही लोग अधिक महत्व देते हैं। हालात देखकर कभी कभी लगने लगता है कि कहीं अंग्रेजी तो हमारी मातृ भाषा नहींर्षोर्षो वैसे भी आज औसत आयु 60 ही मानी जा रही है, फिर 62 सालों के बाद भी हिन्दी की चिंदी इस तरह उड़ाई जा रही है।हमारे देश में भी मीडिया ने हिन्दी के बजाए हिंगलिश (हिन्दी और अंग्रेजी का मिला जुला स्वरूप) को अंगीकार कर लिया है। अभी कुछ दिनों पहले फ्रांस ने एक सर्कुलर जारी कर फ्रांसिसी भाषा के अखबारों को ताकीद किया था कि अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग निश्चित प्रतिशत से ज्यादा न करे। विडम्बना ही कही जाएगी कि हिन्दुस्तान में हिन्दी के संरक्षण के लिए सरकार के प्रयास नाकाफी ही हैं।देश के कमोबेश हर बड़ी परीक्षाएं अंग्रेजी माध्यम में ही संचालित होती हैं। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायलय और देश की सबसे बड़ी पंचायत अर्थात संसद में भी अंग्रेजी का खासा बोलबाला है। देश के महामहिम राष्ट्रपति हों या प्रधानमंत्री सभी देश को संबोधित करते हैं, अंग्रेजी भाषा को ही प्रमुखता देते हैं।हिन्दी भाषी राज्यों से हटकर अन्य राज्यों में सूचना पटल या अन्य उदघोषणाएं भी या तो क्षेत्रीय भाषा में होतीं हैं, या फिर अंग्रेजी में। अधिकतर कांप्टीटिव एक्जाम्स का माध्यम अंग्रेजी ही होता है। क्या यही हैं हमारे द्वारा छ: दशकों में चुनी गई सरकारों की प्रतिबद्धताएं!अभी हाल ही में खबर है कि भारतीय रेल भी अंग्रेजी को ही अंगीकार करने जा रही है। कहा जा रहा है कि रेल मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण महकमे को संभालने के बाद ममता बनर्जी ने एक फरमान जारी किया है कि रेल्वे की परीक्षाएं या तो अंग्रेजी में संचालित की जाएं या फिर क्षेत्रीय भाषाओं में।अख्खड़पन, मनमानी और व्यक्तिवादिता के लिए मशहूर ममता बनर्जी देश की राष्ट्रभाषा के साथ संवैधानिक रूप से छेड़छाड़ करना चाह रही हैं, जो निंदनीय है। ममता बनर्जी को अपनी इस अवैध मंशा को लागू कराने के लिए मंत्रीमण्डल की बैठक (केबनेट) में इसे लाना होगा।इसके बाद बारी आएगी संसद की, फिर देश की अदालतें खुलीं हैं। कुल मिलाकर ममता अपनी मर्जी को आसानी से अमली जामा नहीं पहना सकती हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर ममता बनर्जी के दिमाग में इस तरह का ख्याल कौंधा भी तो कैसेर्षोर्षो ममता बनर्जी ने अपने इस फरमान को अमली जामा पहनाने के लिए बाकायदा एक समिति का गठन भी कर दिया है, जो अपने प्रतिवेदन के साथ रेल मंत्री के अनुमोदन के उपरांत इसे लागू करने की कवायद में जुट जाएगी।हिन्दी अंग्रेजी के साथ ही साथ संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान पा चुकी क्षेत्रीय भाषाओं में परीक्षा कराने से कोई रोक नही रहा है, पर यह हमारे देश की राष्ट्रभाषा की अस्मत का सवाल है। अभी लोग क्षेत्रीयता को लेकर तरह तरह के जहर उगल रहे हैं। शुक्र है कि भाषा विवाद अभी शांत है, ममता बनर्जी का यह प्रयास भाषा विवाद को जन्म देकर एक नया बखेड़ा खड़ा करेगा।क्षेत्रीय भाषाओं को तरजीह देने की बात समझ में आती है, किन्तु हिन्दी के बजाए अंग्रेजी को महत्व देना समझ से परे ही है। सवाल यह उठता है कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाष है, फिर हिन्दी की इस तरह दुर्दशा कोई कैसे कर सकता है। क्षेत्रीय भाषाओं को निश्चित तौर पर बढ़ावा मिलना चाहिए, किन्तु हिन्दी जो कि राष्ट्रभाषा है की इस तरह उपेक्षा करना संभव नहीं है, यह असंवेधानिक करार दिया जा सकता है, किन्तु आजाद भारत में वर्तमान परिस्थितियों में देश के नीति निर्धारक अपने अपने फायदों के लिए कानून की व्याख्या अपने हिसाब से करने में माहिर हैं।वर्तमान में रेल्वे की ग्रुप डी की परीक्षाएं हिन्दी, अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं में होती हैं। ग्रुप सी की परीक्षाएं अंग्रेजी और हिन्दी में करवाई जाती हैं। ग्रुप सी में क्षेत्रीय भाषा को जोड़ने की मांग लंबे अरसे से की जा रही थी। क्षेेत्रीय भाषा को इसमें शामिल करने में कोई असहमत नहीं था, किन्तु जैसे ही हिन्दी को इससे प्रथक करने की बात आई वैसे ही खलबली मचना स्वाभाविक ही है।कितने आश्चर्य की बात है कि आजाद हिन्दुस्तान में जहां राजभाषा के विकास के लिए गृह मंत्रालय के अधीन अलग से राजभाषा विकास विभाग की स्थापना की है। आफीशियल लेंग्वेज को प्रोत्साहन देने के लिए केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय एक तरफ पूरा जोर लगा रहा है, वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार की रेल मंत्री द्वारा इस मुहिम पर पानी फेरने की कवायद की जा रही है।प्रधानमंत्री को चाहिए कि अगर उनके अधीनस्थ कोई मंत्रालय इस तरह राष्ट्र की संपत्ति के साथ खिलवाड़ करता है तो उसे चेतावनी देकर इस तरह की परिपाटी को तत्काल रोकें। साथ ही साथ सरकार यह भी सुनिश्चित करे कि कोई भी सरकारी नुमाईंदा संविधान के साथ छेड़छाड़ की बात भी मन में न लाए, वरना आने वाले समय में संविधान की धज्जियां उड़ती नजर आएंगी।