गुरुवार, 13 अगस्त 2009

आलेख 13 अगस्त 2009

हर वर्ग में लोकप्रिय हो चुका है ब्लाग

(लिमटी खरे)

भारत में अस्सी के दशक में इंटरनेट की कल्पना करना बेमानी ही समझा जाता था। आज इंटरनेट का जादू लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है। इंटरनेट पर सूचनाओं का आदान प्रदान जिस दु्रत गति से हो रहा है, उसे देखकर लगने लगा है कि बमुश्किल पांच सालों में देश का हर गांव इंटरनेट की पहुंच में होगा।इंटरनेट पर वेब साईट्स का निर्माण काफी कठिन समझा जाता था, इसके लिए वेब स्पेस किराए पर लेना होता है। वर्तमान में वेब साईट का निर्माण या संचालन बहुत बड़ी बात नहीं रह गई है। जो लोग वेब स्पेस किराए पर नहीं ले सकते हैं, उनकी सुविधा के लिए है ``ब्लाग``।ब्लाग में आप अपने विचारों को रखकर दुनिया भर के लोगों के सामने परोस सकते हैं। सेलीब्रिटीज के ब्लाग जब तब चर्चा का केंद्र बने रहते हैं। इन सेलीब्रिटीज की देखादेखी आम भारतीय ने भी अपने अपने ब्लाग आरंभ कर दिए हैं। ब्लाग को अस्तित्व में आए दस साल पूरे हो गए हैं।इतिहास खंगालने पर ज्ञात होता है कि 1999 में पहली मर्तबा पीटर मरहोल्ज की निजी वेब साईट पर ब्लाग शब्द का प्रयोग पहली बार हुआ था। सेन फ्रांसिस्को पायरा लैब्स ने ब्लागिंग का सार्वजनिक मंच ब्लागर की शुरूआत की। अमेरिका के एक इंटरनेट प्रोग्रामर जोसफ िफ्रट्जपैट्रिक ने अपनी मित्रमण्डली को ताजा गतिविधियों से एक दूसरे को रूबरू रखने के लिए लाईवजर्नल नामक ब्लाग होस्टिंग सेवा की शुरूआत की।साल दर साल प्रगति के सौपान गठने वाले ब्लाग ने कई सफर तय किए हैं। 2002 में दुनिया के चौधरी कहे जाने वाले अमेरिका के राजनयिकों ने अपने संस्मरणों को सार्वजनिक करना आरंभ किया वह भी ब्लाग के माध्यम से। यहां इंस्टापंडित और द डेली डिश के नाम से दो ब्लाग आरंभ हुए जिनमें अमेरिका के लोकप्रिय राजनेताओं ने अपने संस्मरण दर्ज करवाए।इसके उपरांत 2003 में इंटरनेट का किंग बन चुका सर्च इंजन गूगल ने ब्लॉगर का अधिगृहण कर लिया। रेडिफ ने भी ब्लागिंग सेवा आरंभ कर दी। इराक पर अमेरिका के हमले की खबरें जब ब्लाग के माध्यम से सार्वजनिक हुईं तो यह लोगों के बीच चर्चा और कोतुहल का विषय बन गइंZ।इसके बाद 2004 के अंत में आए सुनामी तूफान के दौरान ब्लाग खबरों के स्त्रोत का प्रमुख जरिया बन गया था। ``सी - ईट`` जैसे ब्लाग ने संचार व्यवस्था भंग हो जाने पर प्रभावित इलाकों से आए संदेशों को प्रकाशित करने का नेक काम किया, और इसी के साथ ये राहत बचाव दल तथा मीडिया के लिए ताजा जानकारियों के महत्वपूर्ण स्त्रोत बनकर उभरे। इसी साल ब्लाग शब्द मरियम वेबस्टर डिक्शनरी में स्थान पा चुका था।इंटरनेट का अखबार माना जाने वाला न्यूज ब्लॉग ``द हफिंग्टन पोस्ट`` 2005 में अस्तित्व में आया। भारतीय ब्लागरों ने कश्मीर में आए 2005 के भूकंप के बाद बचाव और राहत सामग्री उपलब्ध कराने की गरज से 26 अक्टूबर 2005 को `ब्लाग क्वेक डे` की शुरूआत की।11 जुलाई 2006 को मुंबई ट्रेेन बम धमाकों के बाद भारत सरकार ने कुछ ब्लागों पर रोक लगा दी थी। सरकार का मानना था कि उन ब्लागोेें के माध्यम से जनता के बीच नफरत और उन्माद फैलाने वाली भावनाओं को उकेरा जा रहा था। इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को ब्लागस्पाट डॉट काम और टाईपपैड डॉट काम के पूरे डोमेन को ही ब्लाक करने का फरमान जारी कर दिया गया था, कालांतर में यह प्रतिबंध हटा दिया गया था।वैसे ब्लॉग की शुरूआत इंटरनेट की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है, क्योंकि इसके माध्यम से सूचनाओ का आदान प्रदान जिस उन्मुक्त तरीके से सीधे सीधे आसानी से हो पाता है, वह किसी और तरीके से संभव प्रतीत नहीं होता है। इससे आप अपने बचपन की सहेजी यादें, जवानी की कारगुजारियां, प्रोढ़ावस्था के अनुभव और बुढ़ापे की खट्टी मीठी यादों को सबके बीच सहजता से परोस सकते हैं।संचार क्रांति के इस युग में जिस तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं, उसे देखकर भविष्य में क्या रोमांच हो जाए कहा नहीं जा सकता है। ब्लॉग ने अपने दस सालों के इस सफर में जिस तेजी से लोकप्रियता की पायदानें चढ़ीं हैं, उसे देखकर यह कहना गलत नही होगा कि आने वाले समय में ब्लाग का जादू हर हिन्दुस्तानी के सर चढ़कर बोलेगा।
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युवाओं पर खासा जोर लगा रहे हैं युवराज

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी का ध्यान युवाओं की तरफ ज्यादा दिखाई पड़ रहा है। कांग्रेस को मजबूत करने की गरज से अब कांग्रेस के युवराज छात्र राजनीत में भी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। राजधानी दिल्ली में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनावों पर राहुल बारीक नजर रखे हुए हैं।उमर दराज कांग्रेसियों की बेसाखी के बजाए राहुल की पसंद युवा शक्ति दिख रही है। यही कारण है कि मंत्रीमण्डल में भी उन्होंने युवाओं की ज्यादा से ज्यादा भागीदारी सुनिश्चित करने की कोशिश की थी। राहुल गांधी चाहते हैं कि 21वीं सदी का भारत युवाओं का भारत हो।राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का दावा है कि उमर दराज नेताओं की ``पावर टेक्टिस`` राजनीति से वे आजिज आ चुके हैं। यही कारण है कि राहुल गांधी युवाओं को आगे लाकर भारत को युवा बनाने की तैयारियों में पूरी तरह जुट गए हैं। देश भर में टेलेंट सर्च इसकी की एक कड़ी माना जा रहा है।सूत्रों ने यह भी बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) की जीत सुनिश्चित करने की जवाबदेही राहुल गांधी ने केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक के कांधों पर डाल दी है। गौरतलब होगा कि कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी भी इन चुनावों में खासी दिलचस्पी लेतीं हैं। यही कारण है कि जीत के तुरंत बाद एनएसयूआई के पदाधिकारी सीधे सोनिया गांधी के दरबार में जाते हैं।राहुल के करीब सूत्र यह भी बताते हैं कि पिछली मर्तबा इसके अध्यक्ष का पद कांग्रेस के हाथ से निकल जाने को लेकर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी खासे खफा हैं, एवं इस बार वे कोेई चांस लेने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। वैसे भी युवाओं को लुभाने के लिए युवक कांग्रेस द्वारा इसी माह से ``यूथ मार्च`` के नाम से एक मुखपत्र का आरंभ किया जा रहा है।वैसे चौक चौराहों पर राहुल गांधी के विजन को लेकर चर्चाएं आम हो चुकी हैं। पढे लिखे युवा चिकित्सक, इंजीनिर, प्रबंधक, पत्रकार आदि हर वर्ग के लोग राहुल गांधी के जज्बे पर सहमत होते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस में युवाओं की सदस्य संख्या का आंकड़ा दो करोड़ को छूने वाला है।