गुरुवार, 30 जुलाई 2009

राजनीति की जद में बुंदेलखण्ड

(लिमटी खरे)


मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लगभग चार दर्जन जिलों को मिलाकर बनने वाले वर्तमान काल्पनिक और पूर्व के वास्तविक बुंदेलखण्ड क्षेत्र पिछले कुछ सालों से राजनीति का अखाड़ा बनकर रह गया है। पिछले एक दशक से कांग्रेस द्वारा बार बार बुंदेलखण्ड के सूखे को राजनैतिक रंग दिया जा रहा है।
पिछले लगभग पांच सालों से मानसून मानो बुंदेलखण्ड अंचल से रूठ सा गया है। पिछले साल तो बारिश के पूर्व इस समूचे क्षेत्र में स्थितियां नियंत्रण से बाहर थीं। उस दौरान कांग्रेस ने केंद्र सरकार से बुंदेलखण्ड के लिए विशेष पैकेज की मांग की थी। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार ने लगभग पांच हजार करोड़ रूपए के पैकेज के लिए सैद्धांतिक सहमति भी दे दी थी।
पिछले ही साल कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र पर विशेष नजर रखी थी। इस दौरान उन्होंने अनेक ग्रामों में जनसंपर्क कर रातें भी दलितों के घरों पर बिताईं थीं। विपक्षी दल इसे राजनैतिक स्टंट करार देने से नहीं चूके, किन्तु राहुल का यह क्रम इन आरोपों से डिगा नहीं और लगातार चालू रहा।
राहुल गांधी की पहल पर पिछले साल जब केंद्र सरकार ने लगभग पांच हजार करोड़ रूपयों के विशेष आर्थिक पैकेज के लिए हामी भरी थी, तब भले ही बुंदेलखण्ड वासी इससे खुश हुए हों अथवा नहीं पर यहां पदस्थ प्रशासकीय अमले के चेहरों पर रौनक आ गई थी। प्रशासनिक तंत्र में फंसकर यह पैकेज अंतत: केद्र सरकार जारी ही नहीं कर पाई कि जोरदार बारिश ने इस पैकेज के औचित्य पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिए थे। इसके बाद विधान सभा और लोकसभा चुनाव निपट गए, एवं विशेष पैकेज एक बार फिर कपूर के मानिंद गायब हो गया।
एक बार फिर राहुल गांधी ने केंद्र सरकार से विशेष पैकेज की मांग कर उस जिन्न को जगा दिया है, जो कुछ समय से सो रहा था। मध्य प्रदेश सूबे के निजाम भला चुप कैसे रहते। शिवराज सिंह चौहान ने भी एक बयान जड़ दिया कि इस पैकेज की मांग उनके द्वारा काफी समय से की जा रही है। शिवराज जानते हैं कि राहुल गांधी ने अगर पैकेज मांगा है तो डॉ.मनमोहन सिंह को उसे स्वीकार करना आवश्यक मजबूरी ही होगी।
बहरहाल यह सच है कि देश के विकास की प्रक्रिया अनेक असंतुलनों का शिकार रही है। उदहारण के तौर पर सबसे ज्यादा आयकर देने वाली देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई को आधारभूत ढांचे के लिए दिल्ली से कई गुना कम राशि मिलती है। महाराष्ट्र में ही एक तरफ औद्योगिक और कृषि आधारित संपन्नता है, तो किसानोंं के द्वारा आत्महत्या करने का आंकड़ा भी इस सूबे में सबसे ज्यादा ही है।
वैसे यह संतोष की बात मानी जा सकती है कि बुंदेलखण्ड का पिछड़ापन राजनैतिक परिदृश्य में एक मुद्दा बन गया है। कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने इस क्षेत्र के विकास के लिए केंद्र सरकार से आठ हजार करोड़ रूपयों का विशेष पैकेज मांगा है।
नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी, पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी और कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमति सोनिया गांधी के पुत्र, कांग्रेस के युवा महासचिव होने के नाते उनकी बात को वजन देना केंद्र सरकार की मजबूरी है। किसी की क्या मजाल के राहुल गांधी की मंशा के खिलाफ काम कर जाए। पूर्व पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर को राहुल गांधी के कोप का भाजन बनकर यह मंत्रालय छोड़ना पड़ा था, यद्यपि सरकारी तौर पर इसकी न तो पुष्टि की गई और न ही खण्डन पर चर्चा इसी बात की रही।
राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दििग्वजय सिंह ने अपने पठ्ठे से इस तरह का तीर चलवाकर कई निशाने एक साथ साध लिए हैं। एक तरफ उन्होंने मायावती को उत्तर प्रदेश के बुंदेलखण्ड तो शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश के बुंंदेलखण्ड में घेरने का उपक्रम किया है।
वैसे यह भी सच है कि अगर राहुल गांधी की अपील पर इस क्षेत्र के लिए विशेष पैकेज स्वीकार कर लिया जाता है तो आने वाले दिनों में बिहार, उत्तराखण्ड, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ आदि भी विशेष पैकेज की मांग के लिए अड़ जाएंगे, तब इनसे निपटना केंद्र के लिए बहुत मुश्किल होगा। गौरतलब होगा कि हाल ही में नितिश कुमार द्वारा बिहार को विशेष पैकेज दिए जाने की मांग कई मर्तबा की जा चुकी है।
बताते हैं कि केंद्र में सत्तारूढ कांग्रेस चाहती है कि एक प्राधिकरण बनाया जाए जो केंद्र के अधीन काम करे और मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र का विकास सुनिश्चित करे। जाहिर है, इस तरह की बात न तो मध्य प्रदेश को ही रास आएगी न तो उत्तर प्रदेश सरकार को।
केंद्र सरकार को चाहिए कि अगर वह बुंदेलखण्ड के लिए ``विशेष पैकेज`` की घोषणा करने वाली है, तो जल्दी करे एवं इसके लिए आवंटित धन का एक एक पैसा जरूरतमंद तक पहुंचे इस बात को अवश्य सुनिश्चित करे, अन्यथा आठ हजार करोड़ रूपयों में से महज चंद रूपए ही जरूरत मंदों के पास पहुंचेंगे और शेष राशि उनके हाथों में होगी जिन्हें वास्तव में इसकी जरूरत नहीं है।

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फिर ताकतवर होकर उभरे हैं सुरेश सोनी
- अपने गुर्गों को दिलाया राज्य सभा में स्थान
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सरकार्यवाहक सुरेश सोनी एकाएक बहुत ताकतवर होकर उभरे हैं। मध्य प्रदेश से राज्य सभा की दो रिक्त हुई सीटोें पर उनकी पसंद के उम्मीदवारों के नामों पर मुहर लगने से अब भाजपा में उनका दखल काफी हद तक बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है।
संघ के सूत्रों के मुताबिक मध्य प्रदेश में सुषमा स्वराज और नरेंद्र सिंह तोमर के लोकसभा में चुने जाने से रिक्त हुई दो सीटों पर भाजपा में एक अनार सौ बीमार की स्थिति बन गई थी। अंत में अपने अपने नेता के लिए लाबिंग करने वालों के पैरों तले जमीन खिसक गई, जब कप्तान सिंह सोलंकी और अनिल माधव दुबे के नामों पर अंतिम मोहर लगा दी गई।
गौरतलब होगा कि पूर्व में चल रही चर्चाओं में मध्य प्रदेश के कोटे से सिने तारिका हेमा मालिनी या मुख्तान अब्बास नकवी अथवा भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह अपने चहेते पीयूष गोयल को एक सीट देकर दूसरी सीट मध्य प्रदेश के नेताओं के लिए छोड़ देंगे। बाहरी उम्मीदवारों की खिलाफत होने पर मामला गड़बड़ा गया था।
एक तरफ शिवराज सिंह चौहान ने अपना कौल निभाते हुए अनिल माधव दुबे के लिए अपनी सिफारिश कर दी थी। ज्ञातव्य है कि लोकसभा चुनावों में होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से अनिल दवे ने अपनी दमदार दावेदारी प्रस्तुत की थी। इस सीट पर शिवराज सिंह चौहान की पसंद रामपाल सिंह थे। सूत्रों ने बताया कि उस समय चौहान ने दवे से वादा किया था कि राज्य सभा वाले मामले में वे दवे का साथ देंगे।
वैसे दवे के नाम पर भाजपा के संगठन मंत्री माखन सिंह कतई तैयार नहीं बताए जाते थे। माखन की पहली पसंद मेघराज जैन थी, मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों का भी यही दावा है कि मेघराज जैन के लिए मुख्यमंत्री भी तैयार थे। अंत में मुख्यमंत्री ने अनिल दवे के साथ किया वादा निभाते हुए उनके नाम पर अंतिम मोहर लगवा ही दी।
सूत्रों के अनुसार उधर कप्तान सिंह सोलंकी के लिए भी माखन सिंह राजी नहीं थे। इसके साथ ही साथ नरेंद्र तोमर का वरद हस्त ब्रजेंद्र सिंह सिसोदिया के उपर था। भाजपा के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो सुरेश सोनी के वीटो के बाद ही सोलंकी और दवे के राज्य सभा में जाने के मार्ग प्रशस्त हो सके हैं।
मनमोहन के आगे बेबस शीला

(लिमटी खरे)

देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य और भला क्या होगा कि देश की राजनैतिक राजधानी की सरकार पर तीसरी दफा काबिज होने वाली मुख्यमंत्री शीला दीक्षित आज भी केंद्र सरकार अथाZत मनमोहन सरकार के सामने घुटने टेके अपने अधिकारों के लिए चिरौरी कर रही हैं। इसका जीता जागता उदहारण बीते दिनों दिल्ली में हुई धुंआधार बारिश के बाद बनी स्थिति है।
महीनों की तपन के बाद जब बीते सोमवार को तीन घंटे झमाझम बारिश हुई तो दिल्ली में चलना मुहाल हो गया। लोग घरों से निकलकर सड़कों पर बह रहे पानी में अधडूबे ही जाने आने पर मजबूर थे। सवाल यह उठता है कि आखिर दिल्ली की इस दुर्दशा के लिए जवाबदार कौन है? सूबे की निजाम श्रीमति शीला दीक्षित अथवा वजीरे आला डॉ. मनमोहन सिंह।
एक तरह से देखा जाए तो दिल्ली में बारिश में होने वाली परेशानियों के लिए परोक्ष रूप से केंद्र सरकार ही दोषी मानी जा सकती है। इसका कारण यह है कि केंद्र सरकार द्वारा सालों बाद भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया है। इन परिस्थितियों में सब कुछ तो केंद्र सरकार ने अपने ही हाथों में रख रखा है, तब दिल्ली सरकार क्या खाक सुविधाएं मुहैया करवाएगी अपने सूबे के वाशिंदों को।
कहने को दिल्ली सरकार के पास दिल्ली नगर निगम (डीएमसी), दिल्ली पुलिस और दिल्ली विकास प्राधिकरण पर नियंत्रण है। शेष लगभग सारे विभाग तो केंद्र सरकार के इशारों पर ही काम कर रहे हैं। लोक निर्माण विभाग, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी), सहित अनेक विभाग केंद्र की देखरेख में ही कामों को अंजाम दे रहे हैं।
कहते हैं कि केंद्र सरकार का तर्क है कि इस सूबे में व्हीव्हीआईपी ज्यादा रहते हैं, इसलिए पुलिस को केंद्र के अधीन रखना ही ठीक होगा। यह बात कहां तक सच है इस बारे में केंद्र ही बेहतर बता सकता है, किन्तु यह सच है कि केंद्र के व्हीव्हीआईपी की सुरक्षा में दिल्ली पुलिस का एक बहुत बड़ा अमला कार्यरत है।
आलम यह है कि दिल्ली में नगर निगम में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का कोई सीधा दखल नहीं है। दिल्ली में यातायात को नियंत्रित करने का काम संभालने वाली दिल्ली की यातायात पुलिस भी दिल्ली सरकार के उपर ही है। व्यवस्थाओं का आलम यह है कि हर एक कदम पर फैसला लेने के लिए दिल्ली सरकार को उपराज्यपाल के दरबार में हाजिरी लगाकर अपना पक्ष रखना होता है, उपराज्यपाल की मर्जी से ही कोई फैसले पर मुहर लग सकती है।
दिल्ली सरकार के पास अधिकार नहीं होने के कारण उसे किसी भी योजना को मंजूरी देकर अमली जामा पहनाने के लिए कम से कम 13 से 14 विभागों की अनुमति की दरकार होती है। सोमवार को हुई भारी बारिश के बाद दिल्ली में जगह जगह जाम की स्थिति निर्मित हो गई थी।
इस जाम से निजात दिलाने के लिए यातायात पुलिस के मातहत भी सड़कों से नदारत ही थे। लोग घंटों जाम में फंसे मशक्कत करते रहे किन्तु उनकी सुध लेने वाला कोई भी जिम्मेदार सरकारी नुमाईंदा सड़क पर दिखाई नहीं दिया। एनडीएमसी के अधिकार क्षेत्र वाले सर्वोच्च न्यायालय के इर्द गिर्द पानी जमकर भर गया था, किन्तु एनडीएमसी के उपर से नीचे तक के अधिकारी खुर्राटे भर रहे थे।
वैसे केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार को कुछ अधिकार तो दिए हैं, जिनके समुचित उपयोग से दिल्लीवासियों का नारकीय जीवन सुधर सकता है। बारिश आते ही दिल्ली में नगर निगम का अमला घरों घर जाकर छतों पर गमले, और बरामदों में रखे कूलर की जांच कर रहे हैं।
यह कवायद इसलिए की जा रही है, ताकि मच्छरों को पनपने से रोका जा सके और दिल्लीवासियों को डेंगू जैसे बुखार से बचाया जा सके। मगर क्या दिल्ली सरकार पोखरों में तब्दील सड़कों और नालियों में जमा पानी हटाने की दिशा में कुछ प्रयास करेगी। क्या इन पानी के एकत्र होने वाले स्थानों पर मच्छर नहीं पनपेंगे?
क्या मच्छर पलने से रोकने की जवाबदारी सिवनी दिल्ली के रहवासियों की ही है? यक्ष प्रश्न तो यह है कि एक दिन की बरसात मं ही पूरे शहर को शर्म से पानी पानी करने वाले बदइंतेजाम से रहने वाली दिल्ली सरकार ने क्या अपने नुमाईंदों का चालान काटा? उततर निश्चित तौर पर नहीं ही होगा।
इन परिस्थितियों में दिल्ली के रहवासियों द्वारा जानकारी के अभाव में दिल्ली सरकार को पानी पी पी कर कोसा जाना कहां तक उचित होगा। बेहतर होगा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाकर सूबे की सारी की सारी व्यवस्थाएं दिल्ली सरकार के नियंत्रण में ही रखी जाएं ताकि देश की राजनैतिक राजधानी में रहने वाले कम से कम बुनियादी जरूरतों के लिए तो न तरसें।

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शिवराज पर कसेगा संघ का शिकंजा!
- मध्य प्रदेश के रास्ते दो प्रमुख प्रचारकों को रास में भेजने की तैयारी
- मध्य प्रदेश होगा अब संघ की सीधी निगरानी में
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश सूबे में राज करने वाले शिवराज सिंह चौहान की स्वतंत्रता के दिन शायद समाप्त होने वाले हैं, जल्द ही उन पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का शिकंजा कसने वाला है। कप्तान और दवे की राज्य सभा में आमद के साथ ही साफ हो गया है कि मध्य प्रदेश सूबा अब संघ की सीधी निगरानी में ही रहने वाला है।
आजाद हिंदुस्तान के इतिहास में संभवत: यह पहला मौका है जबकि संघ के दो पूर्व प्रमुख प्रचारक एक साथ ही निर्विरोध रूप से पिछले रास्ते (राज्य सभा) से संसदीय सौंध तक पहुंच रहे हैं। मध्य प्रदेश में सुषमा स्वराज और नरेंद्र तोमर के लोकसभा के लिए चुने जाने पर रिक्त हुई प्रदेश की दो सीटों पर भाजपा के महाराष्ट्र प्रभारी कप्तान सिंह सोलंकी और प्रदेश के उपाध्यक्ष अनिल माधव दवे भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार बनाए गए हैं। गौरतलब होगा कि कप्तान सिंह सोलंकी जहां मध्य प्रांत में तो दवे भोपाल विभाग के प्रचारक रहे हैं।
मध्य प्रदेश विधानसभा में भाजपा की तादाद 143 है, जबकि शेष अन्य महज 84 ही हैं। वैसे भी सियासी गणित के हिसाब से विरोधी दल भाजपा को कहीं से भी चुनौति देने की स्थिति में नहीं है। 10 अगस्त को होने वाले चुनाव के लिए कांग्रेस के खेमे में पसरी मायूसी साफ दिखाई पड़ रही है।
वैसे इन दोनों ही नेताओं को अपेक्षाकृत काफी कम कार्यकाल ही भोगने को मिलेगा। नरेंद्र तोमर के द्वारा रिक्त की गई सीट पर प्रत्याशी कप्तान को 2 अप्रेेल 2012 तक कार्य करने का तो सुषमा स्वराज के द्वारा खाली की गई सीट पर भाजपा प्रत्याशी दवे को महज 11 माह का ही कार्यकाल मिल सकेगा। इसका कार्यकाल 29 जून 2010 तक ही है।
भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय 11 अशोक रोड़ में चल रही चर्चाओं के अनुसार संघ प्रष्ठभूमि के उक्त दोनों ही नेताओं के मैदान में उतारे जाने से संघ का मैसेज साफ दिखाई पड़ रहा है कि आने वाले दिनोंं में मध्य प्रदेश सरकार पर संघ अपना नियंत्रण रखना चाह रहा है।
बताते हैं कि हाल ही में हुए आम चुनावों मेंं पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी के कारण सत्ता से काफी दूर हुई भाजपा की स्थिति को लेकर संघ काफी चिंतित है। इन परिस्थितयों में भाजपा शासित राज्यों को वह अपने सीधे नियंत्रण में लेना चाह रहा है, ताकि हिन्दुत्व के एजेंडे को सूबे में फैलाया जा सके।
कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में मध्य प्रदेश में संघ का वर्चस्व मध्य प्रदेश सहित भाजपा शासित प्रदेशों में तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। भाजपा में मची अंर्तकलह से निपटने संघ की यह अघोषित रणनीति कितनी कारगर साबित होती है, यह बात तो समय के साथ ही सामने आएगी किन्तु यह तय है कि शिवराज सिंह चौहान के लिए आने वाला समय मार्ग के शूल निकालने में ही जाया
होगा।
संदर्भ फोरलेन विवाद

सांप ही मारें, लकीर न पीटें

0 लिमटी खरे


फ®रलेन क® लेकर तरह तरह की अफवाहें जन्म ले चुकी हैं। क®ई कहता है, यह छिदवाड़ा से ह®कर जाएगी, त® क®ई एनएचएआई के कार्यालय के छिंदवाड़ा स्थानांतरण की बात कहकर अपनी धाक जमा रहा है। क®ई माननीय सवोंच्च न्यायलय के स्थगन की बात कर रहा है। इसी बीच सिवनी की विधायक एवं परिसीमन मेंं समाप्त हुई सिवनी ल®कसश की अंतिम सांसद ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से चर्चा कर सवोंच्च न्यायलय में मध्य प्रदेश के वकील क® “ी खड़ा करने संबंधी विज्ञिप्त जारी करवा दी। कुल मिलाकर मामला क्या है, इसके निर्माण का कार्य क्यों रुका अथवा बलात र®का गया, इसमें नेताओं, प्रशासन और ठेकेदार की क्या “ूमिका है, यह बात साफ नहÈ ह® सकी है। ल®ग त® इस मामले में केंद्रीय “ूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ क® ही कटघरे में खड़ा करने से नहÈ चूक रहे हैं। राजनैतिक नफा नुकसान अपनी जगह हैं, किन्तु जब 18 दिसंबर 2008 क® पी¤नरहरि ने एक आदेश जारी कर वृक्षों की कटाई पर प्रतिबंध लगाया था, वह “ी म®हगांव से खवासा तक ही, तब कमल नाथ के पास “ूतल परिवहन के बजाए वाणिज्य और उद्य®ग मंत्रालय हुआ करता था। इसके साथ ही साथ जब नरसिंहपुर से लेकर बरास्ता छिंदवाड़ा फ®रलेन राष्ट™ीय राजमार्ग का प्रस्ताव आ चुका है, तब इस तरह की बातें बेमानी ही मानी जा सकती हैं।
हमारे अनुसार अब तक सार्वजनिक हुए प्रपत्रों और तथ्यों से प्रथम –ष्टया ज® मामला सामने आया है, उसके मुताबिक महाराष्ट™ की संस्कारधानी नागपुर सहित अनेक स्थानों से प्रकाशित ल®कमत, मुंबई से प्रकाशित डीएनए ने जनवरी 2008 से संयुक्त तौर पर एक मुहिम चलाई है, जिसमें पेंच नेशनल पार्क से ह®कर गुजरने वाले इस उत्तर दक्षिण गलियारे के उक्त विवादित शग के बन जाने से बाघों क® जबर्दस्त खतरा पैदा ह®ने की आशंका जताई गई है। इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी में द®नों ही समाचार पत्रों ने इस तरह की बात क® विस्तार से रेखांकित किया है। इन द®नों का मूल उÌेश्य अगर वाकई बाघों क® बचाना है, त® इनका प्रयास नििÜचत तौर पर सराहनीय ही कहा जाएगा। इस तथ्य में कुछ संशय ही लग रहा है, क्योंकि इसके पूर्व स्वीकृत किया गया छिंदवाड़ा नागपुर रेल लाईन का अमान परिवर्तन के मुÌे क® इन्होंने छुआ तक नहÈ है। वस्तुत: यह रेल मार्ग पेंच के अंदर से ही ह®कर गुजर रहा है। अगर रेल गाड़ी यहां से ह®कर गुजर सकती है, त® सड़क पर चलने वाले वाहनों से इस तरह का सौत्®ला व्यवहार आखिर क्यों? इसके बाद वाईल्ड लाईफ ट™स्ट अ‚फ इंडिया की एक रिट पिटीशन ज® सवोंच्च न्यायालय में दाखिल की गई है, क® चमत्कारिक तरीके से सिवनी में उतारा गया। इस रिट पिटीशन के बारे मे माननीय सवोंच्च न्यायालय की वेव साईट पर कुछ “ी जानकारी उपलब्ध नहÈ है। सिवनी की फिजां में त्ौर रही अफवाहों के बीच क®ई “ी ठ®स बात सामने नहÈ आ पा रहÈ हैं। इसी बीच उत्साही युवा शिक्षाविद संजय तिवारी और पूर्व पार्षद “®जराज मदने ने आगे आकर शहरवासियों क® इकट्ठा किया और सवोंच्च न्यायालय में अपनी बात रखने का फैसला किया। इन द®नों के कदम का स्वागत किया जाना चाहिए। फिर विधायक श्रीमति नीता पटेरिया ने पहल कर सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान के संज्ञान में इस बात क® लाया और उनकी विज्ञिप्त के अनुसार राज्य सरकार इस मामले में पक्ष रखने के लिए अपना वकील “ी वहां त्ौनात करने की इच्छा जाहिर की है। मुÌे की बात त® यह है कि सड़क निर्माण का कार्य अब तक सामने आए प्रपत्रों में कहÈ “ी र®के जाने की बात नहÈ कही गई है। तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि ने अवश्य केंद्रीय साधिकार समिति (सीईसी) द्वारा किए गए निवेदन पर वन और गैर वन क्ष्®त्रों में वृक्षों की कटाई र®कने का आदेश यह कहकर जारी किया है कि पूर्व में जिला कलेक्टर के समस्त आदेश इस आदेश के प्रशव से निष्क्रीय ह® जाएंगे। अब सवाल यह है कि इस मामले की जड़ कहां है। सं“वत: जड़ है पी¤नरहरि का वह आदेश ज® 18 दिसंबर क® जारी हुआ था। स“ी क® सबसे पहले तत्कालीन जिला कलेक्टर के उस आदेश क® निरस्त कराने की दिशा में पहल करना चाहिए। जब वृक्षों की कटाई आरं“ ह® जाएगी तब माननीय सवोंच्च न्यायालय के फैसले के उपरांत ज® ह®ना ह®गा वह ह® सकेगा। इस मामले में केंद्र में सत्तारुढ़ कांग्रेस और प्रदेश की शजपा का मौन सर्वाधिक आÜचर्यजनक है। इस सबसे ज्यादा हैरत अंगेज है इस मार्ग का निर्माण कराने वाली स˜ाव कंस्ट™क्शन कंपनी का मौन। हमारी नितांत निजी राय में अगर आठ माह से इस कंपनी का काम बंद है, और कंपनी हाथ पर हाथ रख्® बैठी है, तब उसने क®ई पहल क्यों नहÈ की? द® ही सूरतों में स˜ाव क® चुप रहना चाहिए या त® वह किसी बहुत बड़े दबाव में है, या फिर उसे उम्मीद से अधिक मुनाफा नजर आ रहा ह®। इस मामले में टेंडर की शतोZ में यह “ी बताया जा रहा है कि विलंब पर जबर्दस्त शिस्त (पेनाल्टी) निरुपित किए जाने का प्रावधान है। विलंब अगर ठेकेदार की अ®र से ह®गा त® सरकार उससे इसे वसूल करेगी और अगर विलंब सरकार की अ®र से ह®गा त® नििÜचत तौर पर ठेकेदार क® इस राशि क® सरकार से वसूल करने का अधिकार ह®गा। वर्तमान परिस्थितियों में ह®ने वाले विलंब में लगता है कि स˜ाव की पांचों उंगलियां घी में सर कड़ही में और धड़ सहित बाकी पूरा शरीर मख्खन में लपटा है।
कहा त® यहां तक “ी जा रहा है कि जिस तरह पूर्व में क“ी कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर अजुZन सिंह के पत्र ´लीक´ हुआ करत्® थ्®, उसी तरह आज सिवनी की फिजां में एक के बाद एक आने वाले आदेश अथवा परिपत्र कालांतर के बाद ही लीक ह®कर बाहर आ रहे हैं। इसके पीछे क्या षणयंत्र है, यह त® समय के साथ ही सामने आ सकेगा पर यह तय ही माना जा सकता है कि क®ई न क®ई षणयंत्रकारी दिमाग इसके पाÜर्व में है। जिस किसी “ी शख्स ने तत्कालीन जिलाधिकारी के उक्त आदेश की सर्टिफाईड कापी निकलवाई ह®गी वह “ी इसी षणयंत्र का एक हिस्सा माना जा सकता है, क्योंकि कापी मिलने की तारीख से मीटर डाउन ह® चुका है, और जब तक ल®गों क® इस आदेश क® खारिज कराने की सूझेगी तब तक यह आदेश का मामला “ी टाईमबार ह® चुकेगा।
सुधि पाठकगणों से हमारा पुन: आग्रह है कि इस मामले में सांप ही मारने का कृत्य किया जाए, सांप मारने के उपरांत लकीर पीटने से कुछ हासिल नहÈ ह®ने वाला है। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि सर्वप्रथम तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि द्वारा 18 दिसंबर क® जारी उक्त आदेश क® निरस्त करवाएं फिर आगे की कार्यवाही क® अंजाम दें। अगर उक्त आदेश निरस्त ह® गया त® देश की इस महात्वाकांक्षी परिय®जना का कार्य स्वयंमेव ही आगे बढ़ने लगेगा, फिर “ले ही माननीय न्यायालय के आदेश के उपरांत इसे र®क दिया जाए। वर्तमान में न त® किसी ने माननीय सवोंच्च न्यायालय का स्थगन ही किसी क® दिखाया है, और न ही स्थगन संबंधी और क®ई तथ्य ही सामने आया है।