बुधवार, 24 जून 2009

यमुना को टेम्स नहीं यमुना ही बना दीजिए शीला जी


(लिमटी खरे)

कभी देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में कल कल बहती यमुना नदी पिछले दो तीन दशकों से गंदे बदबूदार नाले में तब्दील हो गई है। दिल्ली में केंद्र और राज्य सरकार की नाक के नीचे सारी सीमाएं तोड़ते प्रदूषण ने यमुना का गला घोंटकर रख दिया है। आने वाले एक दशक तक इसके पुनुZद्धार की उम्मीद नहीं की जा सकती है।यमुनोत्री से इलहाबाद के संगम तक यमुना 1375 किलोमीटर का लंबा सफर तय करती है। दिल्ली से पहले स्वच्छ निर्मल जल को लेकर आने वाली यमुना दिल्ली के बाद बुरी तरह प्रदूषित हो जाती है। यमुना के प्रदूषण में दिल्ली की भागीदारी 80 फीसदी से भी अधिक है। वजीराबाद से ओखला बैराज तक का 22 किलोमीटर लंबा यमुना का हिस्सा सबसे अधिक प्रदूषण की चपेट में है।यमुना नदी के साथ श्रृद्धालुओं की अगाध श्रृद्धा जगजाहिर है। भगवान श्रीकृष्ण की कथाएं यमुना नदी के बिना अधूरी सी लगती हैं। यमुना नदी का नाम सुनते ही भगवान श्रीकृष्ण और कालिया नाग की कथा जेहन में जीवंत हो उठती है। मथुरा के बाद यमुना नदी ने श्याम वर्ण ओढ़ लिया है।दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित का यह बयान हास्यास्पद ही माना जाएगा कि यमुना नदी को लंदन की टेम्स नदी नहीं बनाया जा सकता है। हमारा कहना महज इतना ही है कि लंदन की टेम्स नदी ब्रितानी लोगों के लिए गर्व का विषय होगी, वह उन्हीं को मुबारक किन्तु शीला जी हिन्दुस्तान की शान मानी जाने वाली यमुना नदी को टेम्स न बनाकर कम से कम यमुना के रूप में तो ला दीजिए।बकौल शीला दीक्षित -``दशकों से दिल्ली का अव्यवस्थित विकास हुआ है। बाहर से लोग आते हैं, और जहां मन होता है बैठ जाते हैं।`` शीला दीक्षित का यह बयान पूरी तरह गैर जिम्मेदाराना है। देखा जाए तो वे भी उत्तर प्रदेश से ही आईं हैं और दिल्ली पर एक दशक से हुकूमत कर रहीं हैं।अपना इस तरह का बचकाना बयान देने के पहले शीला दीक्षित शायद भूल गईं कि आजादी के बाद के छ: दशकों में से एक दशक से तक तो दिल्ली उन्हीं के कब्जे में है, और बीच का कुछ अरसा अगर छोड़ दिया जाए तो शेष समय तो दिल्ली की गद्दी पर कांग्रेस का ही शासन रहा है। शीला से बयान से लगता है मानो वे कह रहीं हों कि दिल्ली पर काबिज रही कांग्रेस की सरकारों ने यहां की बसाहट पर ध्यान नहीं दिया है।मुख्यमंत्री खुद स्वीकार करतीं हैं कि यमुना नाले में तब्दील हो चुकी है। उन्होंने यह भी कहा कि यमुना एक्शन प्लान एक और दो में 2800 करोड़ रूपए तो खर्च हुए हैं किन्तु ठोस तकनीक न होने से इसका वांछित परिणाम सामने नहीं आया। हम शीला दीक्षित को याद दिलाना चाहते हैं कि जो व्यय हुआ है, वह उन्हीं के शासनकाल में हुआ है, और अगर जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को बिना परिणाम या ठोस तकनीक के बहाया गया है तो क्यों न इसे तैयार करने और अमली जामा पहनाने वालों पर जनता के धन के अपव्यय का आपराधिक मुकदमा चलाया जाए?शीला दीक्षित ने कहा कि इसकी सफाई में अभी सात आठ साल और लगेंगे। क्या एक नदी के महज 22 किलोमीटर के हिस्से को संरक्षित करने के लिए शीला दीक्षित को पिछली पारी के 10 साल और अभी के छ: महीने काफी नहीं हैं, जो दिल्लीवासियों को वे सात आठ साल का एक और झुनझुना पकड़ा रहीं हैं।शीला दीक्षित के लिए कामन वेल्थ गेम्स पहली प्राथमिकता बने हुए हैं। क्या शीला दीक्षित सरकार के लिए यह शर्म की बात नही होगी कि विदेशी खिलाड़ी और दर्शक दिल्ली में नाक पर रूमाल रखकर घूंमेंगे और विशेषकर यमुना को देखकर वे हिन्दुस्तान की राजधानी के बारे में क्या धारणा बनाएंगे? क्या शीला दीक्षित की नाक तब नहीं कटेगी जब कामन वेल्थ गेम्स की खबरों के बजाए अंतर्राष्ट्रीय मीडिया दिल्ली की बदहाली और दुर्गंध से बजबजाती यमुना नदी के फोटो और स्टोरी छापेंगे?एक दशक तक सत्ता का सुख भोगकर तीसरी पारी खेलने वालीं दिल्ली की महिला मुख्यमंत्री यमुना के मामले में बेबस ही नजर आईं। तेज तर्रार प्रशासक के तौर पर पहचान बना चुकीं शीला दीक्षित दस सालों मेें यमुना के लिए करोड़ों रूपए पानी में बहते हुए चुपचाप देखतीं रहीं और अब घड़ियाली आंसू बहाकर कह रहीं हैं कि यह शर्म की बात है कि यमुना एक गंदे नाले में तब्दील हो गई है।देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में बहने वाली दिल्लीवासियों के लिए कभी जीवनदायनि रही यमुना नदी को भले ही शीला दीक्षित लंदन की टेम्स नदी बनाना चाहें पर दिल्लीवासियों की ओर से हम श्रीमति शीला दीक्षित से विनम्र गुजारिश करते हैं कि यमुना नदी को टेम्स मत बनाईये इसे पुरानी यमुना के स्वरूप में ही ले आईए।


अंतत: सच साबित हुई जगतगुरू की भविष्यवाणी

स्वामी स्वरूपानंद जी ने कहा था खण्डूरी कार्यकाल पूरा नहीं करेंगे

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। उत्तराखण्ड की भुवनचंद खण्डूरी के मामले में जगतगुरू शंक्राचार्य स्वामी स्वरूपानंद की भविष्यवाणी सत्य साबित हुई, उन्होंने कहा था कि भुवन चंद खण्डूरी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे। ज्ञातव्य है कि स्वरूपानंद जी ने कहा था कि चूंकि खण्डूरी का राज्याभिषेक रिक्ता तिथि को हुआ था इसलिए वे कार्यकाल पूरा नहीं कर सकेंगे।गौरतलब होगा कि उत्तराखण्ड में विधायकों के पुरजोर विरोध के बावजूद भी खण्डूरी को दो मार्च 2007 को विधायक दल का नेता घोषित कर दिया गया था। बाद में उन्होंने अपने पथ प्रदर्शक और ज्योतिपीठ के एक अन्य दावेदार स्वामी माधवाश्रम की राय पर आठ मार्च को उस समय शपथ ली जब रिक्ता तिथि चल रही थी। खण्डूरी के करीबी सूत्रों का दावा है कि स्वामी माधवाश्रम ने खण्डूरी को सलाह दी थी कि 08 मार्च 2007 को प्रात: दस से बारह बजे के बीच वृष लग्न था, जो काफी समय बाद आया था।इतना ही नहीं, जब यह तिथि घोषित हुई तभी जगतगुरू शंक्राचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने शपथ ग्रहण की तिथि के बारे में कह दिया था कि वह तिथि खण्डूरी की मित्र नहीं शत्रु है, क्योंकि उस दिन चतुर्थी थी जिसे रिक्ता तिथि कहते हैं, यह तिथि राज्याभिषेक के लिए सबसे घातक मानी गई है।जगतगुरू शंक्राचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने कहा था कि चतुर्थी के स्वामी स्वयं भगवान गणेश होते हैं, जो विघ्न कर्ता और हर्ता दोनों ही होते हैं। रिक्ता तिथि पर आंरभ किया गया काम कभी सफल नहीं होता है। वही हुआ खण्डूरी के कार्यकाल में शत्रुओं ने सिर उठाया, अंतर्विरोध के कारण उन्हें पद का त्याग अंतत: करना ही पड़ा।